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जलवायु परिवर्तन से बढ़ सकता है नक्सलियों का समर्थन

बेंगलुरू, 16 अक्टूबर (इंडियास्पेंड/आईएएनएस)। एक नई रिपार्ट के अनुसार, दक्षिण और दक्षिण-पूर्व एशिया में कृषि और मत्स्य पालन से जुड़े क्षेत्रों में काम करने वालों की आजीविका पर जलवायु परिवर्तन के प्रभाव स्पष्ट हो गए हैं, और इस वजह से विद्रोही समूहों और नक्सली आंदोलन के समर्थन में तेजी आ सकती है।

रिपार्ट के अनुसार, इस बात के प्रमाण हैं कि जलवायु परिवर्तन ने क्षेत्र में सामाजिक-आर्थिक और राजनीति असमानता को बढ़ा दिया है, क्योंकि जो सत्ता में होते हैं, वे यह निर्णय करते हैं कि सीमित संसाधन किसे और कितना मिलेगा।

इस रिपोर्ट के सह-लेखक शोधार्थी पर्निला नोर्डक्वीस्ट और फ्लोरियन क्रांपे हैं, जिन्होंने स्टॉकहोम इंटरनेशनल पीस रिसर्च इंस्टीट्यूट (एसआईपीआरआई) के लिए काम करने के दौरान इस रिपोर्ट के लिए काम किया।

जलवायु पर्वितन पर संयुक्त राष्ट्र अंतरसरकारी पैनल की नवीनतम रिपोर्ट के अनुसार, पूर्व-औद्योगिक काल से तुलना की जाए, तो मानव गतिविधियों से भी तापमान में 1 डिग्री सेल्सियस की वृद्धि हुई है। वर्ष 2030 तक या शताब्दी के मध्य तक वैश्विक तापमान में 1.5 डिग्री सेल्सियस की वृद्धि होने की संभावना है।

दक्षिण और दक्षिण-पूर्व एशिया में करीब 2.5 अरब लोग रहते हैं, जहां गरीबी दर में तेजी से कमी आई है। यह भारत जैसे देशों में तीव्र गति से हुई आर्थिक वृद्धि का परिणाम है। हालांकि ये क्षेत्र जलवायु बदलाव के प्रभावों से ग्रस्त क्षेत्र हैं, जहां हिमालय के ग्लेशियर पिघल रहे हैं, कई द्वीप देश समुद्र स्तर के बढ़ने के खतरे का सामना कर रहे हैं। बाढ़, चक्रवाती तूफान, सूखे की समस्या अब इन क्षेत्रों में लगातार हो रही है और आने वाले वर्षो में इसके बढ़ने की संभावना है।

क्रांपे ने इंडियास्पेंड से कहा, “क्षेत्र जलवायु परिवर्तन के प्रभावों के दृष्टिकोण से अतिसंवेदनशील है। इसके अलावा हाल ही में यहां राजनीतिक हिंसा का भी इतिहास रहा है।”

नोर्डक्वीस्ट और क्रांपे ने जलवायु परिवर्तन और संघर्ष के संबंध पर 2000 पूर्व समीक्षित अध्ययन की जांच की। यह रिपोर्ट सितंबर 2018 को प्रकाशित हुई है।

नक्सल संघर्ष से प्रभावित कुछ क्षेत्रों में, आजीविका की खराब स्थिति का संबंध मौजूदा नागरिक संघर्ष की तीव्रता में बढ़ोतरी से है। सूखे या संभावित सूखे के दौरान, इस बात का जोखिम बढ़ गया है कि विद्रोही और सरकारी अधिकारी आजीविका और भोजन प्रावधानों के आदान-प्रदान के लिए नागरिकों से सहयोग या उसे बहाल कर सकते हैं।

रिपोर्ट के अनुसार, जलवायु बदलाव से प्रवासन में इजाफा होगा, जिस वजह से शहरों में संसाधनों को लेकर दंगे भड़क सकते हैं। रिपोर्ट में पूर्वोत्तर भारत के त्रिपुरा में दंगे के मामले का उदाहरण देते हुए कहा गया कि इसका प्रभाव उस क्षेत्रों में सबसे ज्यादा देखा जाएगा, जो पहले से ही सामाजिक-राजनीतिक स्थिरता में निम्न स्तर पर हैं।

क्रांपे ने कहा, “कई जलवायु परिवर्तन समस्याएं अंतर्राष्ट्रीय है। उदाहरण के लिए ब्रह्मपुत्र तीन देशों से होकर बहती है और इस वजह से लगातार बाढ़ की समस्या उत्पन्न होती है। इस बात का कोई सवाल नहीं है कि देशों को सहयोग करने की जरूरत है और भारत व पाकिस्तान के बीच तनाव ने इसे और मुश्किल बना दिया है।”

लेकिन इसका प्रभाव यहीं समाप्त नहीं होता है।

पाकिस्तान में, उदाहरण के लिए इस्लामिक समूह जमात-उद-दावा (जेयूडी) सिंध प्रांत में अत्यधिक बाढ़ के बाद राहत कार्यो में शामिल हुआ था, जिसके बाद संगठन ने वहां अपनी मजबूत उपस्थिति दर्ज कराई है।

 

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