नई दिल्ली। दिल्ली की एक कोर्ट ने मौत के दस महीने बाद एक शख्स को बरी कर दिया। शख्स पर खुद की ही बेटी के रेप का आरोप था। निचली अदालत ने उसे दोषी करार दे दिया था। बाद में दिल्ली हाईकोर्ट से उन्हें न्याय मिला जब बुधवार को हाईकोर्ट ने उसे बरी कर दिया, लेकिन न्याय पाने से 10 महीने पहले ही आरोपी की मौत हो चुकी है।
हाईकोर्ट ने अपने फैसले में कहा कि न ही जांच सही तरीके से हुई थी और न ही ट्रायल सही तरीके से किया गया जिसकी वजह से उसे दस साल की सज़ा सुना दी गई। निचली अदालत द्वारा व्यक्ति को दोषी ठहराए जाने और 10 साल जेल की सजा सुनाए जाने के 17 साल बाद यह फैसला सामने आया है।
जस्टिस आरके गाबा ने कहा कि व्यक्ति पहले दिन से ही बेकसूर होने की बात कहता रहा और दावा करता रहा कि किसी लड़के ने उसकी बेटी को अगवा कर लिया और उसे बहकाया. जनवरी 1996 में जब रेप की एफआईआर दर्ज की गई, उस वक्त लड़की गर्भवती मिली थी. हालांकि जांच एजेंसी और निचली अदालत ने उसकी दलीलों पर कोई ध्यान नहीं दिया.
हाईकोर्ट ने कहा कि पिता ने उस लड़के का सैंपल लेकर भ्रूण के डीएनए का मिलान करने को कहा था लेकिन पुलिस ने कोई बात नहीं सुनी और निचली अदालत ने इस तरह की जांच का कोई आदेश नहीं दिया। अदालत ने कहा कि जांच स्पष्ट रूप से एकतरफा थी। इस समय यह अदालत केवल सभी संबंधित पक्षों की ओर से बरती गयी निष्क्रियता की निंदा कर सकती है।