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12 वर्षों के बाद ही क्यों आता है कुंभ, जानिए इसके पीछे की रोचक कहानी

प्रयागराज। 49 दिन तक चलने वाले कुंभ की तीर्थराज प्रयाग में शुरुआत हो गई। कुंभ मेला दुनिया भर में किसी भी धार्मिक प्रयोजन हेतु भक्तों का सबसे बड़ा संग्रहण है। यह पर्व हर 12 वर्ष के अंतराल में मनाया जाता है। हरिद्वार में गंगा, उज्जैन में शिप्रा, नासिक में गोदावरी और इलाहाबाद में त्रिवेणी संगम जहां गंगा, यमुना और सरस्वती मिलती हैं, इन चार में से किसी एक पवित्र नदी के तट पर इस पर्व का आयोजन किया जाता है।

कुंभ का अर्थ है- कलश, ज्योतिष शास्त्र में कुम्भ राशि का भी यही चिह्न है। कुंभ मेले की पौराणिक मान्यता अमृत मंथन से जुड़ी हुई है। माना जाता है की देवताओं एवं राक्षसों ने समुद्र के मंथन से प्रकट होने वाले सभी रत्नों को आपस में बांटने का निर्णय किया। समुद्र मंथन से जो सबसे मूल्यवान रत्न निकला वो अमृत था, और उसे पाने के लिए देवताओं और राक्षसों के बीच संघर्ष हुआ।

असुरों से अमृत को बचाने के लिए भगवान विष्णु ने अमृत को अपने वाहन गरुड़ को दे दिया। जब असुरों ने गरुड़ से वह पात्र छीनने का प्रयास किया तो उसकी कुछ बूंदें छलक कर इलाहाबाद, नासिक, हरिद्वार और उज्जैन में गिरीं।

अमृत पर अधिकार को लेकर देवताओं और दानवों के बीच लगातार बारह दिन तक युद्ध हुआ था जो मनुष्यों के लिए बारह वर्ष के समान हैं। इसीलिए कुम्भ भी बारह होते हैं।.इनमे से चार कुम्भ पृथ्वी पर होते हैं और आठ कुम्भ देवलोक में होते हैं। तभी से हर 12 वर्षों के अंतरलाल में ही कुम्भ पर्व की स्थिति बनती।

रिपोर्ट-प्रार्थना श्रीवास्तव

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BRIJESH SINGH
the authorBRIJESH SINGH