नई दिल्ली। असफलता जीवन में कहीं ना कहीं सबको परेशान करती है। जब कोई चीज़ पाना हो और वो ना मिले तो तकलीफ होती है लेकिन हार मान लेना गलत है। कहते हैं कि ‘कोशिश करने वालों की कभी हार नही होती।’ मुरैना जिले में जौरा के बिलगांव के आईपीएस मनोज शर्मा ने इसी कहावत को सही सबित किया है।
9वीं, 10वीं में थर्ड डिवीजन से पास आईपीएस मनोज बारहवीं कक्षा में हिंदी को छोड़कर सभी विषयों में फेल हो गए। उन्हें बेइज़्ज़ती महसूस हुई क्योंकि जब वे भैंस चराते समय नॉवेल पढ़ते थे तो गांव के लोग सोचते थे कि बहुत मेहनत करता है लेकिन जब फेल हुए तो गांव के लोग हैरान रह गए। फिर दोबारा मेहनत करके अगली बार 12 कक्षा में 70 प्रतिशत अंक पाकर मनोज दिल्ली में यूपीएससी की तयारी के लिए चले गए।
मनोज के बचपन के दोस्त राकेश शर्मा बताते हैं कि जब तीन चांस में सिलेक्शन नहीं हुआ और मनोज जौरा आते तो हम घंटों नहर किनारे बैठकर गपशप करते। इस दौरान गांव के ही कुछ अन्य दोस्तों ने यहां तक कह दिया कि मनोज पढ़ते-पढ़ते तुम्हारे चश्मा तो लग गया, अब तुम्हारा कुछ नहीं हाेने वाला। गांव लौट आओ। लेकिन मनोज ने सफल होने की जिद बांध रखी थी। आईपीएस में सिलेक्ट होकर उसने पूरे गांव का नाम रोशन किया।
पढ़ाई में कमजोर मनोज 9वीं में थर्ड डिवीजन में पास हुए, जबकि 10वीं में ग्रेस लेकर थर्ड डिवीजन आई। बकौल आईपीएस मनोज, घर वाले चाहते थे कि मैं क्लर्क बन जाऊं इसलिए मैंने उनकी सलाह पर मैथ ले लिया। चूंकि उस समय नकल होती थी और उम्मीद थी कि पास हो जाऊंगा। इसलिए 12वीं में मैथ सब्जेक्ट लेकर पढ़ाई शुरू कर दी। लेकिन फेल हो गया।
मनोज ने बताया कि, जब आईपीएस क्लियर कर इंटरव्यू के लिए पहुंचे तो सामने चयन समिति में बैठे अफसरों ने मेरा बायोडाटा देखा तो उनका पहला सवाल यही था कि यहां आईआईटी, आईआईएम क्वालिफाई कर चुके लोग आए हैं, उनके सामने हम आपको सिलेक्ट क्यों करें। मैंने बेबाकी से उनके सामने कह दिया कि 12वीं में फेल होने के बाद मैं यहां तक पहुंच गया तो मेरे अंदर कुछ तो क्वालिटी होगी। बस मेरे इसी सवाल से चयन समिति सदस्य खुश हुए। फिर 2005 में मेरा सिलेक्शन महाराष्ट्र कैडर में आईपीएस के लिए हुआ। इनकी इस सफलता और मेहनत की कहानी बहुत ही जल्द उपन्यास के रूप में सब के सामने आने वाली है।