नई दिल्ली। बीते शुक्रवार को चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग दूसरी बार अनौपचारिक दौरे के तौर पर तमिलनाडु पहुंचे। उनके आगमन पर तमिलनाडु एयरपोर्ट पर उनका स्वागत करने के लिए तमिलनाडु के मुख्यमंत्री ई के पलानीस्वामी, राज्यपाल बनवारीलाल पुरोहित और तमिलनाडु विधानसभा के अध्यक्ष पी धनपाल पहुंचे। जिसके बाद पीएम मोदी ने जिनपिंग को समद्र किनारे बसे पुरातनकालीन तटीय शहर महाबलीपुरम का भ्रमण कराया। इस दौरान पीएम मोदी पारंपरिक परिधान वेष्टी (धोती) और टुंडू में दिखे। बता दें कि महाबलीपुरम शहर यूनेस्को की हेरिटेज लिस्ट में शामिल ऐतिहासिक धरोहरों में से एक है।
दोनों हे बड़ी हस्तियों के भ्रमण की तसवीरें सोशल मीडिया पर देखने को मिल रही है। पीएम मोदी ने जिनपिंग को अर्जुन तपोस्थली, कृष्ण बटर बॉल और तट मंदिर दिखया और इसके बाद पांच रथ का भ्रमण भी कराया। दोनों ही नेताओं की इन सांस्कृतिक बहुमूल्य स्थलों पर ली गई तसवीरेसिन सोशल मीडिया पर वायरल हो रही है। जिस तस्वीर ने भारत की जनता का सबसे ज्यादा आकर्षित किया वह है जिसमे पीएम मोदी और चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग कृष्णा बटर बॉल के पास खड़े हैं।
इस स्थल को लेकर लोगों में इसको लेकर उत्सुकता है। कृष्णा बॉल एक प्राचीन स्थल है जिसके बारे में काफी जनता नहीं जाती है मगर इसका सच रहस्यमय और भौचक्का कर देने वाला है। यह कृष्णा बटर बॉल भगवबान श्रीकृष्ण का का विशालकाय पत्थर है। यह पत्थर चेन्नई में स्थित है। ऐसी मान्यता है कि चेन्नई में स्थित इस विशाल काय पत्थर को हटाने के लिए एड़ी छोटी एक कर दी। 1908 में मद्रास के गर्वनर आर्थर ने इसे हटाने के लिए सात हाथियों को काम पर लगा दिया था मगर पत्थर तस से मास नहीं हुआ। आज हम इसी कृष्णा बटर बाके बारे में बात करने जा रहे हैं।
– कृष्णा की बटर बॉल के नाम से मशहूर ये विशालकाय पत्थर दक्षिणी भारत में चेन्नई के एक कस्बे में महाबलीपुरम के किनारे स्थित है।
– रहस्यमयी पत्थर का ये विशाल गोला एक ढलान वाली पहाड़ी पर 45 डिग्री के कोण पर बिना लुढ़के टिका हुआ है।
– माना जाता है यह कृष्ण के प्रिय भोजन मक्खन का प्रतीक है, जो स्वयं स्वर्ग से गिरा है।
ग्रेविटी के नियमों के विरुद्ध है ये पत्थर
– यह पत्थर आकार में 20 फीट ऊंचा और 5 मीटर चौड़ा है। जिसका वजन लगभग 250 टन है।
– अपने विशाल आकार के बावजूद कृष्णा की यह बटर बॉल फिजिक्स के ग्रेविटी के नियमों के विरुद्ध है।
– ये भारीभरकम पत्थर पहाड़ी की 4 फीट की सतह पर अनेक शताब्दियों से एक जगह पर टिका हुआ है।
– देखने वालों को महसूस होता है कि यह पत्थर किसी भी क्षण गिरकर इस पहाड़ी को चकनाचूर कर देगा।
– जबकि पत्थर का अस्तित्व आज तक एक रहस्य बना हुआ है। साइंटिस्ट्स इस पर कई लॉजिक देते हैं। लेकिन ठोस जवाब नहीं मिला।
पल्लव राजा ने भी की थी नाकाम कोशिश
स्थानीय लोग इसको भगवान का चमत्कार मानते हैं। दक्षिण भारत में राज करने वाले पल्लव वंश के राजा ने इस पत्थर को हटाने का प्रयास किया, लेकिन कई कोशिशों के बाद उनके शक्तिशाली लोग इसको खिसकाने में भी सफल नहीं हुए। 1908 में मद्रास के गवर्नर आर्थर ने इसको हटाने का आदेश दिया, जिसके लिए सात हाथियों को काम पर लगाया गया था। आज ये टूरिस्ट आकर्षण बन चुका है, जहां हजारों लोग हर साल इसको देखने आते है, जिनमें से कुछ इसको धकेलने का प्रयास भी करते हैं निश्चित ही वो सफल नहीं होते।
क्या कहते हैं साइंटिस्ट ?
दूसरी ओर भूवैज्ञानिकों का तर्क है कि प्राकृतिक क्षरण ने इस तरह के असामान्य आकार का उत्पादन करने की संभावना नहीं है जबकि वैज्ञानिकों ने यह प्रमाणित किया है कि चट्टान केवल एक प्राकृतिक निर्माण है।