लखनऊ। नागरिकता संशोधन कानून के खिलाफ लखनऊ में हुई हिंसा के बाद गिरफ्तार किए गए कांग्रेस कार्यकर्ता सदफ जाफर और पूर्व आईपीएस अफसर एसआर दारापुरी समेत दर्जनभर आरोपियों को मंगलवार सुबह जेल से रिहा कर दिया गया। बता दें कि 3 जनवरी को सिविल कोर्ट ने एसआर दारापुरी, कांग्रेस कार्यकर्ता सदफ जफर और पवन अंबेडकर सहित 14 लोगों को जमानत पर रिहा करने का आदेश दिए थे। लखनऊ के एडीजे संजय शंकर पांडेय की कोर्ट ने सभी 14 लोगों को 50-50 हजार रुपये के मुचलके पर जमानत दी थी। वहीँ, जेल से रिहा होते ही एसआर दारापुरी ने उत्तर प्रदेश पुलिस पर कई गंभीर आरोप लगाए। दारापुरी ने कहा कि जब हिंसा हुई थी, तब मैं घर में नजरबंद था। इसके बाद मुझे गिरफ्तार कर लिया गया और खाना नहीं दिया गया। मुझे ठंड लग रही थी। मैंने कंबल की मांग की, लेकिन पुलिस ने मना कर दिया।
एसआर दारापुरी ने कहा कि मुझे गिरफ्तार करने का कोई कारण नहीं था। मुझ पर सोशल मीडिया पर नागरिकता संशोधन कानून (सीएए) के खिलाफ टिप्पणी पोस्ट करने और लोगों को भड़काने का आरोप लगाया गया जो कि बिल्कुल गलत है। कई निर्दोषों को फंसाया गया है और बेरहमी से पीटा गया है। हिंसा के लिए आरएसएस और भाजपा जिम्मेदार हैं। हमारी आवाज को खारिज नहीं किया जा सकता है, हम सीएए के खिलाफ विरोध जारी रखेंगे।
वहीं, सदफ जाफर ने कहा कि 19 दिसंबर को जब लखनऊ में हिंसा हुई तो मैं फेसबुक लाइव के जरिए पुलिस की निष्क्रियता उजागर कर रही थी। हम शांतिपूर्वक सीएए के खिलाफ विरोध कर रहे थे, जो संवैधानिक है। योगी सरकार अमानवीय है। यह हिंदू और मुसलमानों के बीच फूट पैदा करने की कोशिश कर रही है। मुझे पुलिस हिरासत में बेरहमी से पीटा गया। यहां तक कि पुरुष पुलिस वालों ने भी मुझे पीटा था। पुलिसकर्मियों ने मुझे लात मारी। सदफ जाफर ने कहा कि पुलिस ने मुझे पाकिस्तानी कहा। मेरे परिवार को मेरी गिरफ्तारी के बारे में सूचित नहीं किया गया था। हजरतगंज थाने में जो लोग मेरे बारे में पूछने आ रहे थे उन्हें हिरासत में लिया गया। सैकड़ों बेगुनाहों को फंसाया गया है।