लखनऊ। इलाहाबाद हाई कोर्ट के लखनऊ बेंच ने सेंटर फॉर सिविल लिबर्टीज द्वारा तमाम लोगों को दिए जाने वाले यश भारती पुरस्कार के विरोध में दायर याचिका पर उत्तर प्रदेश सरकार से जवाब माँगा है।
सेंटर की अधिवक्ता डॉ नूतन ठाकुर ने कोर्ट से कहा कि सरकार प्रत्येक व्यक्ति को 11 लाख रुपये और भारी-भरकम मासिक पेंशन दे रही है लेकिन ये पुरस्कार पूरी तरह मनमाने ढंग से दिए जा रहे हैं, जिस पर शासकीय अधिवक्ता ने जवाब के लिए समय माँगा।
जस्टिस देवेन्द्र कुमार अरोरा और जस्टिस राजन रॉय की बेंच ने कहा कि इन पुरस्कारों में पब्लिक मनी का उपयोग होता है जिसे मनमाने तरीके से नहीं दिया जा सकता है। कोर्ट ने कहा कि पूर्व में भी आईपीएस अफसर अमिताभ ठाकुर द्वारा इस सम्बन्ध में दायर याचिका में कई सवालों पर जवाब मांगे गए थे लेकिन अब तक कोई जवाब नहीं आया है। कोर्ट ने जवाब देने के साथ संस्कृति सचिव को मामले की अगली सुनवाई 23 जनवरी 2017 को अभिलेखों के साथ तलब किया है।
कोर्ट में प्रार्थना की गयी है कि एक रिटायर्ड हाई कोर्ट जज की अध्यक्षता में एक जाँच कमिटी बना कर वर्ष 2012-16 के बीच दिए गए सभी यश भारती पुरस्कारों की समीक्षा कराई जाए और गलत ढंग से पुरस्कार पाए लोगों से इसे वापस लिया जाए।