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असभ्य और परिष्कृत, दोनों तरह के नेता जरूरी : भादुड़ी

नरसिंह प्रसाद भादुड़ी, कोलकाता, असभ्य, परिष्कृत, नेताNrisingha_PrasadBhaduri

 

नरसिंह प्रसाद भादुड़ी, कोलकाता, असभ्य, परिष्कृत, नेता
Nrisingha_PrasadBhaduri

कोलकाता | समाज और राजनीति की पेचीदगियों को सुलझाने के लिए भारतीय महाकाव्य महाभारत का सहारा लेने वाले साहित्य अकादमी पुरस्कार विजेता नरसिंह प्रसाद भादुड़ी कहते हैं कि 21वीं सदी की अंतरद्वंद्वी राजनीति में असभ्य राजनीतिक नेता उतने ही महत्वपूर्ण हैं जितने कि उनके परिष्कृत समकक्ष।

भादुड़ी ने एक साक्षात्कार में  कहा, “अगर आप आज की राजनीतिक पार्टियों को देखेंगे तो पाएंगे कि उनके पास परिष्कृत राजनीतिक नेता हैं और ठीक इसी के साथ निचले स्तर पर ऐसे नेता हैं जिन्हें आप असभ्य और अनगढ़ कहेंगे। इन सभी के उनके अपने महत्व हैं, भूमिका है।”

महाभारत के साथ इसकी तुलना करते हुए भादुड़ी ने कहा इन पेचीदगियों की उत्पत्ति सबसे बड़े ज्ञात महाकाव्य में हुई है। किसी नेता विशेष का नाम लिए बगैर कोलकाता के रहने वाले भादुड़ी ने कहा, “आप देखें, अर्जुन एक परिष्कृत और परिपक्व राजनीतिज्ञ हैं और वहीं आपके पास एक अपरिष्कृत भीम भी हैं।”

भारतविद् और भारतीय महाकाव्यों और पुराणों के विशेषज्ञ को हाल में बांग्ला भाषा में ‘महाभारतेर अष्टादशी’ के लिए साहित्य अकादमी पुरस्कार से सम्मनित किया गया है। एक शोधकर्ता और टीकाकार के रूप में 66 वर्षीय भादुड़ी महाकाव्यों के विभिन्न आयामों राजनीति, समाज, महिला सशक्तिकरण, लैंगिकता, सभी को उसकी गहराई में नापते हैं। प्राचीन ग्रंथों की समझदारी के आधार पर उन्होंने एक जटिल संरचना के महत्व को रेखांकित किया।

भादुड़ी ने कहा, “समाज और राजनीति के बीच संबंध की जटिलता काफी महत्वपूर्ण है, जैसा कि महाभारत में देखा गया है। यह जटिलता और संघर्ष होना चाहिए..अगर हर कोई संत हो जाएगा तो कोई उत्साह नहीं बचेगा।”

महाभारत के एक श्लोक का उल्लेख करते हुए उन्होंने पूछा, “अगर केंद्र सरकार द्वारा उठाए गए सभी कदमों को एक सकारात्मक प्रतिक्रिया मिलती है तो जटिलता कहां है?”

उन्होंने कहा कि अच्छा और बुरा कभी स्थिर नहीं रहता है और अंतिम विचार यह है कि युद्ध की वेदना के बीच हम कैसे शांति की खोज करते हैं। भादुड़ी ने कहा, “महाभारत युद्ध में शांति की खोज को दर्शाता है और यही हमें आज भी करना है।”

महाकाव्य से एक और हवाला देते हुए उन्होंने कहा कि धर्मनिरपेक्षता का स्वरूप बदलता रहा है और समावेशीकरण जरूरी है। हम कभी-कभी देखते हैं कि धर्मनिरपेक्ष समाज को बनाए रखने में कोताही हो रही है। हमें याद रखना चाहिए कि हमारा देश विविधताओं से भरा है।

उदाहरण के तौर पर भादुड़ी ने कहा कि मुस्लिम यहां काफी समय से रह रहे हैं। उन्होंने कहा, “वे भारतीय समाज के अभिन्न अंग बन गए हैं और इसलिए एकीकरण ज्यादा मजबूत होनी चाहिए। हमें सबके बारे में सोचना है।”

जाति व लोगों के वर्गीकरण के बारे में उन्होंने कहा कि महाकाव्य के कुछ खास भाग में शुद्र को निम्न के रूप में पेश किया गया है, लेकिन कई अन्य भागों में सभी वर्गो की समानता की बात कही गई है।

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