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सुरक्षा परिषद का औचित्य साबित करने के लिए सुधार प्रक्रिया शुरू हो : भारत

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संयुक्त राष्ट्र| भारत ने सुरक्षा परिषद की रुकी हुई सुधार प्रक्रिया को फिर से शुरू करने आवाज उठाई है। भारत ने कहा है कि परिषद के ‘खोए औचित्य’ को फिर से पाने के लिए इसे दुनिया की नई वास्तवितकता को दर्शाने वाली संस्था के रूप में बदला जाना चाहिए। भारत के स्थायी प्रतिनिधि सैयद अकबरुद्दीन ने सुरक्षा परिषद से मंगलवार को कहा, “‘वी द पीपुल’ के नाम पर फैसले लेने वाली यह जो सुरक्षा परिषद है, वह दुनिया की आबादी की एक बहुत ही छोटी संख्या का प्रतिनिधित्व करती है।” उन्होंने कहा, “यदि यह ‘द पीपुल’ (जनता) के लिए नियम बनाने के लिए है तो इसे नई वास्तविकताओं को पर्याप्त रूप से दर्शाने की जरूरत है।”

सुधार की तत्काल जरूरत पर जोर देते हुए उन्होंने कहा, “एक ऐसी सुरक्षा परिषद जो अपना औचित्य खो चुकी हो, टकराव रोकने और शांति बनाए रखने का साधन नहीं हो सकती।” टकराव रोकने के मुद्दे पर आयोजित एक बहस के दौरान उन्होंने कहा, “दुनिया बदल रही है लेकिन शांति एवं सुरक्षा के लिए मूल रूप से जिम्मेदार संस्थागत संरचना अब भी स्थिर है।”

उन्होंने कहा कि नए मुद्दों, खतरों और 21वीं सदी की जरूरतों की चुनौतियों के समाधान के लिए पुराने ढंग के नहीं बल्कि एक आधुनिक तंत्र की जरूरत है। सुरक्षा परिषद के सुधार और विस्तार के प्रयासों पर एक तरह से तभी से विराम लग गया, जब संयुक्त राष्ट्र महासभा ने पिछले सत्र के दौरान समझौता वार्ता को रोक दिया था और मामले को वर्तमान सत्र के लिए छोड़ दिया था जिसे इस सत्र में अब तक नहीं उठाया गया है।

संयुक्त राष्ट्र का प्रारंभिक काम देशों में टकराव रोकना है और इससे जुड़े मुद्दे के समाधान निकालना और लागू करना है। इसके बारे में अकबरुद्दीन ने कहा कि प्रयासों को ऊपर से नीचे की ओर करने की जगह नीचे से ऊपर की ओर किया जाना चाहिए। उन्होंने कहा कि स्थानीय, राष्ट्रीय, उप क्षेत्रीय और क्षेत्रीय स्तर पर ऐसे काम करने वाले बेहतर स्थिति में हो सकते हैं और इन मुद्दों का प्रबंध बेहतर तरीके से कर सकते हैं। उन्होंने कहा कि भारत का मानना है कि संयुक्त राष्ट्र को टकराव रोकने के लिए एक संस्कृति विकसित करने के लिए यह मानना चाहिए कि शांति बनाए रखने की प्राथमिक जिम्मेदारी सदस्य देशों पर निर्भर करती है।

उन्होंने शांति बनाए रखने के प्रयासों के लिए देशों को इसके प्रयास का बीड़ा उठाने के लिए संसाधन मुहैया कराने के बजाय संयुक्त राष्ट्र के संस्थागत पहलू पर ध्यान केंद्रित करने की आलोचना की। उन्होंने कहा कि विश्लेषणात्मक साधन, तथ्य का पता लगाना, एजेंडा तय करना, कूटनीतिक पहलें और शांति अभियान जैसी चीजों की एक महत्वपूर्ण भूमिका है लेकिन ये देशों के टकराव के मुद्दों को सुलझाने के प्रयासों में केवल पूरक हैं।

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Dileep Kumar
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