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दुर्गा पंडालों की ‘ब्रांडिंग’ कर ये रिक्शे वापस पाएंगे पहचान

सभी रिक्शों को सजाने में लगे 1.35 लाख

कोलकाता। अपनी पहचान खो रहे हाथ से खींचे जाने वाले रिक्शे कोलकाता की सड़कों पर वापस दौड़ते नजर आएंगे। दुर्गा पूजा के मौके पर ये पूजा समिति की ब्रांडिंग कर रहे हैं।   हाथ से खींचे जाने वाले रिक्शे, कोलकाता , दुर्गा पंडालों की 'ब्रांडिंग', रिक्शा चालक80 साल पुरानी काशी बोस दुर्गा पूजा समिति ने पहल कर इन रिक्शा चालकों को दुर्गा पूजा के पंडालों में इस्तेमाल होने वाले विभिन्न वस्तुओं को लाने-ले जाने का काम दिया है।

रंग-बिरंगे पहियों से सजे यह रिक्शे शहर में घूम-घूमकर अंग्रेजी विरासत की याद ताजा करा रहे हैं। उत्तरी कोलकाता की पूजा समिति की प्रदीप्ता नेन ने कहा, “हमने रिक्शे को सजाया है ताकि वे खास लग सकें। हम वर्तमान में ऐसे 20 वाहनों का उपयोग हमारी पूजा समिति के ब्रांडिंग के लिए कर रहे हैं।”

नेन के मुताबिक इसका उद्देश्य कोलकाता के युवाओं को अतीत से जोड़ना है। इन सभी रिक्शाओं को सजाने का बजट 1.35 लाख आया है।उन्होंने कहा, “हमने रिक्शा चालकों को विशेष परिधान मुहैया कराए हैं और हम ध्यान रख रहे हैं कि वे अच्छे दिखें। अगर कोई विदेशी इन रिक्शों की सवारी करना चाहता है तो उसके लिए यह सेवा मुफ्त है। यह खास रिक्शा सवारी 19 अक्टूबर तक जारी रहेगी।”

हाथ से खीचें जाने वाले रिक्शों की शुरुआत जापान से हुई थी, जहां 1870 में इन्हें पालकी में बदल दिया गया। यह रिक्शे धीरे-धीरे जापान से समूचे एशियाई देशों में फैल गए। कोलकाता में 1920 और 1930 के दशक में इनका इस्तेमाल काफी होता था।

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Sudha Pal
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