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संगीतमय श्रीराम कथा के प्रवचन को प्रभु की सेवा मानते हैं स्‍वामी राम शंकर

वेदांत, योग व भावपूर्ण संगीत पर है स्‍वामी राम शंकर का पूरा अधिकार

नई दिल्‍ली। बदलते दौर में संन्यास जीवन भी अपग्रेड हो गया है, आज हम आपको एक ऐसे युवा सन्यासी से मिलाने जा रहे है जो शास्त्रों के भीतर ही नहीं बल्कि डिजिटल एवं कंप्‍यूटर की दुनिया में भी शानदार दखल रखते है, सोशल मीडिया में युवा सन्यासी स्वामी राम शंकर अपनी कई खूबियों के कारण बेहद लोकप्रिय है। वेदांत का ज्ञान हो या योग का कुशल अभ्यास अथवा हो भावपूर्ण संगीत का गान इन सब पर अच्छा-खासा अधिकार रखते है स्‍वामी रामशंकर, भगवान श्री राम को ईष्ट एवं अपना आदर्श मानाने वाले स्वामी राम शंकर बहुत ही रोचकता एवं सामाजिक उपयोगिता से युक्त संगीतमय श्रीराम कथा के सुरीले प्रवचनकार है। अभी तक पूरे देश के 12 राज्यों में संगीतमय श्रीराम कथा का प्रवचन कर चुके है वे इस कार्य को प्रभु की सेवा मानकर करते है।

जीवन की यात्रा में हर समय पढ़ते रहने वाले स्वामी राम शंकर को संगीत से बेहद लगाव है, इसी वजह से इन दिनों विश्वप्रसिद्ध इंदिरा कला संगीत विश्विद्यालय में स्थाई रूप से निवास कर संगीत को गहराई से जानने- सीखने एवं समझने हेतु संगीत गुरु श्री नमन दत्त जी से तालीम प्राप्त कर  रहे है। माथे पर वैष्णव तिलक, पूरे शरीर में गेरूआ वस्त्र युक्त परिधान में विश्विद्यालय परिसर के भीतर एक युवा सन्यासी का अध्ययन रत होना समस्त विद्यार्थी जनों के लिये आज भी किसी कौतूहल से कम नहीं है।  स्वामी जी कहते है, संगीत तो हम किसी अन्य शहर में रह कर भी सीख सकते थे किंतु वहा दो चीजें कभी नही मिल पाती, पहली खैरागढ़ सदृश्य संगीत का वातावरण एवं दूसरी इतनी बड़ी संख्या में युवाओ का संग जिनके साथ हमें ढेर सारे विचार-विमर्श करने का सहज अवसर सुलभ है।

स्‍वामी जी का कहना है कि मेरा सपना था, कि युवाओ के बीच कुछ वर्ष जीवन जी सकूं क्योंकि तभी हमें  पता चलेगा कि हमारे देश के युवा पीढ़ी किस मानसिकता के साथ जीवन जी रहे है, जिसके अनुसार भविष्य में मुझे अपने युवा साथियो के साथ मिल कर किस प्रकार कार्य करना है, ये बात हम पता कर रहे है। एक बात हमने महसूस किया कि सन्यासी के रूप में कुछ समय सामन्य- जन के मध्य व्यतीत करने से सन्यास के विषय में एक बेहतर सम्प्रेषण लोगों के बीच बन पायेगा इस उद्देश्य हेतु भी मेरा विश्विद्यालय प्रवास सार्थक सिद्ध होगा, स्वामी राम शंकर का जन्म 1 नवंबर सन 1987 को उत्तर प्रदेश के देवरिया जिले के ग्राम खजुरी भट्ट में हुआ, गोरखपुर में स्थित पंडित दीनदयाल उपाध्याय गोरखपुर विश्वविद्यालय से बी.काम. की पढाई करते समय ही आपने सन्यास ले कर, सनातन धर्म- संस्कृति के अध्ययन में आज भी पूरी तरह तल्लीन है।

पिछले 8 सालो में भारत वर्ष के अनेक प्रांतो में स्थित गुरुकुलों में रह कर वेद ,पुराण , एवं योग शास्त्र का अध्ययन कर वर्तमान में एशिया के सर्वप्रथम सबसे बड़े संगीत विश्वविद्यालय ” इन्दिरा कला संगीत विश्विद्यालय ”खैरागढ़ , में दाखिला ले कर भारतीय संगीत शास्त्र का साहित्यिक एवं प्रायोगिक अध्ययन कर रहे है । जिला मुख्यालय देवरिया से 12किमी दूरी पर स्थित टेकुआ चौराहा के निकट ग्राम खजुरी भट्ट में स्वर्गीय श्री राम सेवा मिश्रा जी निवास करते थे। जिनको तीन पुत्र क्रमशः आद्याप्रसाद, विद्याधर तथा नंदकिशोर मिश्र प्राप्त हुये। नंदकिशोर मिश्रा जी कर्मकांड के आचार्य है जो गोरखपुर शहर में रहते है। आपके दो पुत्र रामप्रकाश तथा उदय प्रकाश व एक पुत्री विजयलक्ष्मी जी है।

रामप्रकाश जी का जन्म 1 नवम्बर 1987 को खजुरी भट्ट में हुआ, आपके पिता जी आपको पढ़ाने के लिए गांव से लेकर गोरखपुर चले आये यही आप महाराणा प्रताप इंटर कॉलेज से 12 तक की पढ़ाई संपन्न किये, आगे जब आप पंडित दीनदयाल उपाध्याय गोरखपुर विश्वविद्यालय से बी.काम. द्वितीय वर्ष की पढ़ाई कर रहे थे तभी 1 नवम्बर 2008 को प्रातःकाल में छुप कर अयोध्या आ गये जहां 11नवम्बर को लोमश ऋषि आश्रम के महंथ स्वामी शिवचरण दास महाराज से संन्यास की दीक्षा प्राप्त कर भगवन की साधना में लीन हो गये।

हालांकि दोस्तों के कहने पर आपने बी.काम. की पढ़ाई बिना नागा किये 2009 में पूरी कर लिये। अब रामप्रकाश से स्वामी राम शंकर दास हो गये , कुछ समय बीतने के बाद पूज्य स्वामी जी के ह्रदय में विचार प्रगट हुआ की सनातन धर्म का ठीक प्रकार से अध्यन करना चाहिए जिसके फल स्वरुप स्वामी जी अयोध्या छोड़ कर गुजरात चले गये वहा आर्य समाज के ”गुरुकुल वानप्रस्थ साधक ग्राम आश्रम” रोजड़ में रहकर योग दर्शन की पढ़ाई व साधना किये। इसके बाद आप कुछ समय हरियाणा के जींद में स्थापित गुरुकुल कालवा में रह कर संस्कृत व्याकरण की पढ़ाई किये इसी जगह प्रख्यात योग गुरु स्वामी रामदेव जी भी अपना बाल कॉल बिता चुके है।swamy ram shanker3

सितंबर 2009  को हिमाचल के कांगड़ा जिला में स्थित चिन्मय मिशन के द्वारा संचालित गुरुकुल ” संदीपनी हिमालय” में प्रवेश प्राप्त कर गुरुकुल आचार्य संत शिरोमणि पूज्य पाद स्वामी गंगेशानन्द सरस्वती जी के निर्देशन में तीन वर्ष तक रह कर वेदांत उपनिषद्, भगवद्गीता ,रामायण आदि सनातन धर्म के शास्त्रों का अध्ययन संपन्न कर 15 अगस्त 2012 को आप शास्त्र में स्नातक की योग्यता प्राप्‍त किये।

अभी भी आपके भीतर की योग विषयक पिपासा शांत नहीं हो पायी थी, जिसके कारण ही योग को समझने के लिये योग के प्रसिद्ध केंद्र ” बिहार स्कूल ऑफ़ योगा” मुंगेर (रिखिआ पीठ) में फरवरी 2013 से मई 2013 तक साधना किये। आगे अपनी पिपाशा शांत करने हेतु विश्व प्रसिद्ध ”कैवल्य धाम” योग विद्यालय लोनावला पुणे, महाराष्ट्र में रह कर जुलाई 2013 से अप्रैल 2014 तक डिप्लोमा इन योग के पाठ्यक्रम में रह कर योग से सम्बंधित पतंजलि योग सूत्र, हठप्रदीपिका, घेरण्ड संहिता आदि प्रमुख शास्त्रो का अध्ययन कर स्वयं में शांति का अनुभव करने के फलस्वरूप पूज्य स्वामी जी वर्तमान समय में प्रभु श्री राम के चरित्र को रोचकता के साथ संगीतमय प्रस्तुति कर समाज के नागरिको को सत्यनिष्ठ, सदाचारी बनने की प्रेरणा प्रदान कर रहे है, ऐसे युवा सन्यासी को सच्चे मन से मै अपनी श्रद्धा सुमन अर्पित करता हूं , जो इस कलियुग में मानवगत स्वार्थी स्वभाव का परित्याग कर समाज को अपना जीवन समर्पित कर रहे है।

स्वामी जी युवाओं के साथ रहने एवं उनके साथ, उनके लिये कार्य करने में विशेष रूचि रखते है। बकौल स्वामी राम शंकर कहते है कि आज धर्म का अत्यंत बिगड़ा रूप लोगो के मनमस्तिष्क में व्याप्त हो चुका है, जिसे दूर करना अत्यंत आवश्यक हो गया है और यह तभी संभव है, जब हम युवाओं के साथ धर्म से जुड़े मुख्य विन्दुओ पर स्वस्थ चर्चा करे  एवं उनके भीतर व्याप्त धर्म सम्बन्धी गलतफहमियों को निदान हो, तभी जा कर अखंड भारत के आंतरिक अखंडता को हम कायम रख सकेंगे।

 

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