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राष्ट्रीय जल सम्मेलन शनिवार से खजुराहो में, हजारे भी होंगे शामिल

छतरपुर (मध्य प्रदेश), 1 दिसंबर (आईएएनएस)| मध्य प्रदेश की पर्यटन नगरी-खजुराहो में शनिवार से दो दिवसीय राष्ट्रीय जल सम्मेलन शुरू होने वाला है। इस सम्मेलन में सामाजिक कार्यकर्ता अन्ना हजारे, जलपुरुष राजेंद्र सिंह के अलावा देश भर के पर्यावरण प्रेमी और जल संरक्षण के हितैषी जमा होंगे।

दो दिवसीय सम्मेलन के विभिन्न सत्रों में भारत को दुष्काल मुक्त कैसे बनाया जा सकता है, इस पर चर्चा होगी और आगामी रणनीति बनेगी।

जल-जन जोड़ो के राष्टीय संयोजक संजय सिंह ने शुक्रवार को आईएएनएस को बताया, देश के कई हिस्सों के लिए सूखा और बाढ़ बड़ी समस्या बनती जा रही है। 13 राज्यों में सूखे के हालात हैं। इन राज्यों के 317 जिले इसकी जद में हैं। सबसे बुरा हाल तो बुंदेलखंड का है। औसत बारिश के बावजूद भी यह इलाका सूखे की समस्या से जूझ रहा है। अब तो सूखा अकाल में बदल रहा है।

सिंह ने बताया कि भारत और बुंदेलखंड को सूखे और दुष्काल मुक्त कैसे बनाया जाए, इसके लिए देष भर के पर्यावरण विद् दो-तीन दिसंबर को बुंदेलखंड के केंद्र खजुराहो में जुट रहे है। ‘सूखा मुक्त राष्टीय जल सम्मेलन’ में इस बात पर चिंतन-मनन के लिए होगा कि इस दुष्काल को बढ़ने से कैसे रोका जाए। क्योंकि आजादी के बाद देश में सूखा प्रभावित जमीन दस गुना बढ़ गई है।

उन्होंने आगे बताया कि भारत को दुष्काल मुक्त बनाने के लिए जल साक्षरता अभियान चलाया जा रहा है। महाराष्ट में इस अभियान के जरिए अच्छा काम हुआ है। खजुराहो में होने वाले सम्मेलन में सूखे से मुक्ति के लिए देश भर में जल साक्षरता अभियान का संकल्प लिया जाएगा।

सम्मेलन का ब्यौरा देते हुए सिंह ने बताया कि इस सम्मेलन में अन्ना हजारे सहित देश के विषय विशेषज्ञ, पर्यावरण प्रेमी और सामाजिक कार्यकर्ता हिस्सा लेने वाले हैं। 10 सत्रों में इस सम्मेलन में चर्चा होगी।

बुंदेलखंड में कुल 13 जिले आते हैं, इनमें मध्य प्रदेश के छह छतरपुर, टीकमगढ़, दमोह, पन्ना, सागर व दतिया और उत्तर प्रदेश के सात जिले झांसी, ललितपुर, जालौन, हमीरपुर, महोबा, बांदा व चित्रकूट शामिल हैं। इन 13 जिलों से यात्रा निकालकर जागरूकता का प्रसार करने वाले वर्ग के लोग खजुराहो पहुंच रहे हैं।

सिंह ने कहा, इस समय बुंदेलखंड की हालत पूरे देश में सर्वाधिक संकट ग्रस्त है। जहां सिंचाई के लिए तो छोड़िए पीने के लिए पानी की कमी अभी से नजर आने लगी है। गांव के लोग पानी और खाद्यान्न व रोजगार के अभाव में व्यापक पैमाने पर पलायन कर गए हैं।

सिंह का कहना है कि कर्नाटक और महाराष्ट्र ने सूखे से निपटने के लिए जो प्रयास किए हैं, उनके परिणाम दिख रहे हैं। बुंदेलखंड में भी इसी तरह के प्रयास की जरूरत है। इस पर यहां समुदाय की भागीदारी से कैसे काम किया जा सकता है, इस पर मंथन होगा ताकि कभी पानी से सरोबार रहे बुंदेलखंड का पुराना गौरव लौटाया जा सके।

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