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वसंत पंचमी विशेष : देश में रहती है इस पर्व की धूम, जानें खास बातें

लखनऊ। वसंत पंचमी का त्यौहार भारत में बड़े हर्षोल्लास मनाया जाता है। आज मां सरस्वती देवी का विशेष रुप पूजन-अर्चन किया जाता है। वसंत पंचमी दिन सफेद, पीले व वासन्ती रंग के कपड़े पहनकर सरस्वती पूजन करने का विधान है। इसके साथ ही माॅ सरस्वती को मीठा, खीर व केसरिया चावल का भोग लगाया जाता है। धूप, दीप, फल-फूल आदि से माॅ सरस्वती की वन्दना व पूजा की जाती है। प्रसाद के रूप में केसर वाली पीली खीर, पीले चावल आदि वितरित किए जाते हैं।

माघ शुक्ल पंचमी का दिवस वसंत पंचमी, हमारे धर्म ग्रंथों के अनुसार विद्या और बुद्धि की प्रदाता तथा संगीत की देवी मां सरस्वती के जन्म दिवस के रूप में मनाया जाता है। गीता में भगवान श्री कृष्ण कहते हैं : ‘ऋतुनां कुसुमाकर:।’’ अर्थात ऋतुओं में बसंत मैं हूं। वेदों में मां सरस्वती की वंदना में कहा गया है कि यह परम चेतना हैं तथा हमारी बुद्धि, प्रज्ञा एवं मनोवृत्तियों की संरक्षिका हैं। बसंत ऋतु के आगमन से प्रकृति का कण-कण खिल उठता है। सर्दी के कारण जड़त्व को प्राप्त हुई प्रकृति पुन: चेतना को प्राप्त हो जाती है।

बच्चे व युवा इस दिन खूब पतंगें उड़ाते हैं। सारा आकाश रंग-बिरंगी उड़ती पतंगों से भर जाता है। एक-दूसरे की पतंगें काटते युवाओं का उत्साह देखते ही बनता है। मथुरा में इस दिन दुर्वासा ऋषि के मंदिर में भारी मेला लगता है। वृंदावन के श्री बांके बिहारी जी मंदिर में वासंती कक्ष खुलता है। मंदिरों में बसंती भोग रखे जाते हैं। बसंत राग गाए जाते हैं व सभी प्राचीनकाल से चली आ रही परम्पराओं के साथ बसंत पंचमी मनाई जाती है। ब्रज में इस दिन से होली गीत की शुरूआत हो जाती है क्योंकि ब्रज का यह परंपरागत उत्सव है। शिक्षण संस्थान तथा विद्यार्थीगण, साहित्य, संगीत, कला तथा विद्या की अधिष्ठात्री देवी मां सरस्वती का जन्म दिवस मना कर बसंत पंचमी पर्व का अभिनंदन करते हैं तथा बसंत ऋतु के आगमन पर प्रसन्नता व्यक्त करते हैं।

बता दें कि शिक्षा के प्रति जनमानस में उत्साह भरने तथा अध्ययन एवं स्वाध्याय की उपयोगिता को उजागर करने में सरस्वती पूजन के आयोजन की परंपरा है। मंद से मंद बुद्धि व्यक्ति भी मां सरस्वती की कृपा से ज्ञानवान बन जाता है। मां सरस्वती की इस प्रकार वंदना की जाती है, ‘शुक्ल वर्ण वाली, सम्पूर्ण चराचर जगत में व्याप्त,आदि शक्ति, परब्रह्म के विषय में किए गए विचार एवं चिंतन के साररूप परम उत्कर्ष को धारण करने वाली, सभी भयों से मुक्त करने वाली, अज्ञान के अंधेरे को मिटाने वाली, हाथों में वीणा, पुस्तक और स्फटिक की माला धारण करने वाली, और पद्मासन पर विराजमान बुद्धि प्रदान करने वाली सर्वोच्च ऐश्वर्य से अलंकृत, भगवती शारदा (सरस्वती देवी) की मैं वंदना करता हूं।

अज्ञानता वह अंधकार है जिससे कर्तव्य कर्मों में अप्रवृत्ति, प्रमाद तथा अंत:करण में अप्रकाश उत्पन्न होते हैं। बसंत पर्व प्रतीक है अंत:करण और इंद्रियों में चेतनता का तथा विवेक शक्ति उत्पन्न होने का जिसे सत्व गुण की अभिवृद्धि कहते हैं। विद्या प्राप्ति का मूलभाव है अपने लक्ष्य का ज्ञान होना। यह लक्ष्य केवल अपने व्यक्तिगत स्वार्थ की पूर्ति न होकर समस्त प्राणीमात्र के कल्याण की भावना से कर्म करने का होता है। ‘‘सर्वे भवन्तु सुखिन:’’ की भावना पर आधारित कर्म ही वास्तविक रूप से दैवीय सम्पदा से युक्त होते हैं।

एक सहस्र वर्ष तक परतंत्र रही भारत भूमि विदेशी आक्रांताओं से त्रस्त रही। अनेकों ऐसी घटनाएं हुईं जो बसंत पंचमी से जुड़ गईं। लाहौर निवासी बालक वीर हकीकत राय ने बसंत पंचमी के दिन हिन्दू सनातन धर्म की रक्षा के लिए अपने शीश का बलिदान कर दिया और अमर हो गए। भगवान श्री राम बसंत पंचमी के दिन ही शबरी के आश्रम में पधारे थे। गौरक्षा, स्वदेशी व नारी उद्धार के प्रेरणास्रोत सत्गुरु राम सिंह जी का जन्म भी बसंत पंचमी के दिन हुआ था।

सतगुरु राम सिंह जी ने अपना पूरा जीवन अंग्रेजी शासन के विरुद्ध गौरक्षा तथा नारी रक्षा के लिए समर्पित कर दिया। इन्होंने नामधारी सम्प्रदाय की स्थापना की तथा समाज में व्याप्त कुरीतियों के विरुद्ध संघर्ष किया। आपकी जानकारी के लिए बता दें कि इसी दिन हिंदी के यशस्वी कवि सूर्यकांत त्रिपाठी निराला का भी जन्मदिन मनाया जाता है। बसंत पंचमी पर्व धार्मिक, सामाजिक व राष्ट्रीय दृष्टिकोण से अत्यंत ही गरिमाशाली पर्व है जिससे न केवल भारत का इतिहास जुड़ा हुआ है अपितु ज्ञान की अधिष्ठात्री देवी मां सरस्वती की कृपा प्राप्त करने का पर्व है।

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Dileep Kumar
the authorDileep Kumar