लखनऊ। उत्तर प्रदेश में लगातार कानून को ताक पर रखा जा रहा है। 26 जनवरी को कासगंज में तिरंगा यात्रा कब शमशान यात्रा में बदल गई ये किसी को पता नहीं चला। आलम तो यह रहा कि सांप्रदायिक झड़प में चंदन गुप्ता को गोली लगी थी, जिसके बाद अस्पताल में उसकी मौत हो गई थी। यूपी सरकार ने पूरे मामले की जांच को एसआईटी को सौंप दिया है। केंद्र सरकार ने भी प्रदेश सरकार से कासगंज हिंसा को लेकर रिपोर्ट तलब की है।
इसके बाद आरोप-प्रत्योप का दौर शुरू हो गया। फेसबुक पर लोग तमाम तरह की बाते कहने लगे हैं। अब अब यूपी की एक महिला अफसर ने सोशल मीडिया पर कासगंज हिंसा को लेकर एक विवादित पोस्ट किया है। इस पोस्ट के मुताबिक चंदन गुप्ता की मौत का असली कारण बताते 28 जनवरी को रश्मि वरुण ने अपनी फेसबुक पोस्ट में लिखा है, तो ये थी कासगंज की तिरंगा रैली।
यह कोई नई बात नहीं है। अंबेडकर जयंती पर सहारनपुर के सडक़ दूधली में भी ऐसी ही रैली निकाली गई थी। उसमें से अंबेडकर गायब थे या कहिए कि भगवा रंग में विलीन हो गए थे। कासगंज में भी यही हुआ। तिरंगा गायब और भगवा शीर्ष पर जो लडक़ा मारा गया, उसे किसी दूसरे, तीसरे समुदाय ने नहीं मारा। उसे केसरी, सफेद और हरे रंग की आड़ लेकर भगवान ने खुद मारा।
रश्मि ने अपनी पोस्ट में लिखा कि जो नहीं बताया जा रहा है वो ये कि अब्दुल हमीद की मूर्ति या तस्वीर पे तिरंगा फहराने की बजाय इस तथा कथित तिरंगा रैली में चलने की जबरदस्ती की गई और केसरिया, सफेद, हरे और भगवा रंग पे लाल रंग भारी पड़ गया।
इससे पूर्व उत्तर प्रदेश में बरेली के जिलाधिकारी अपने फेसबुक पोस्ट को लेकर जहां विवादों में घिर गए हैं, वहीं बरेली पहुंचे मुजफ्फनगर दंगे के आरोपी मौलाना तौकीर रजा ने राघवेंद्र विक्रम सिंह का समर्थन किया है।
उन्होंने कहा कि ऐसा लग रहा था कि सब कुछ खत्म हो गया है लेकिन जिलाधिकारी ने बहुत हिम्मत जुटाकर जेहाद का काम किया है। वर्ष 2010 में मुजफ्फनगर में हुए दंगे के मुख्य आरोपी तौकीर ने कासगंज हिंसा पर बोलते हुए कहा कि चुनाव नजदीक आ रहे हैं। ऐसे में चुनाव जीतने के लिए कासगंज जैसे बहुत से मामले देश में सामने आते रहेंगे।