Spiritual

मन चाहे दाम, नवरात्रि के नाम

लखनऊ। आप फलों और सब्जियों का रेट एक साल से रोज़ अपने बजट के हिसाब से अपडेट करते आ रहे हों लेकिन त्योहारों पर ख़ासकर व्रत त्यौहार जैसे नवरात्र में आपका सारा गणित धरा धराया रह जाएगा क्यूंकि इस दौरान न ही सरकार के रेट चलते हैं न ही मंडी के. इस दौरान केवल रेट चलता है तो बस बेचने वाले का वो भी व्यक्तिगत रूप से.

जो केला आप 20 से 30 रूपए दर्जन खरीदते थे वही केला आपको आज मार्केट में 60 से 70 रूपए दर्जन मिलेगा. महंगाई का एक स्वरुप ये भी है जिसके लिए आप सरकार या व्यवस्था को दोषी नहीं ठहरा सकते. ये रेट, बेचने वालों द्वारा सुनिश्चित किए जाते हैं जिनसे कतई भी समझौता नहीं किया जाएगा।

महंगाई कैसी भी हो तकलीफ तो देती है जिसका सीधा असर खरीदने वाले पर पड़ता. वो खरीदने वाला कोई भी हो सकता है. जो आपको इतना महंगा बेच रहा है वो भी. महंगाई की लाठी में आवाज़ नहीं होती बस चोट होती है. मुनव्वर राणा का शेर है कि,

“ऐ ख़ाक-ए-वतन तुझसे मैं शर्मिंदा बहुत हूँ,
महंगाई के दौर में ये त्यौहार पड़ा है..”

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BRIJESH SINGH
the authorBRIJESH SINGH