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इस वैज्ञानिक ने आखिर इच्छामृत्यु के लिए स्विट्ज़रलैंड को क्यों चुना? गाना सुनते हुए मौत को लगाया गले 

 

सिडनीः 104 वर्षीय आस्ट्रेलियन वैज्ञानिक डेविड गुडऑल ने आखिर इच्छा मृत्यु के लिए स्विट्ज़रलैंड को क्यों चुना क्यों अपने जीवन का अंत स्विट्ज़रलैंड में कर लिया। खबरों के मुताबिक डेविड को बासेल के एक क्लीनिक में जहरीले ड्रग्स दिए गए। यूथेनेशिया (इच्छामृत्यु) का समर्थन करने वाली स्विस संस्था एग्जिट इंटरनेशनल के मुताबिक, गुडऑल ने गाना सुनते हुए मौत को गले लगाया। उनके इस फ़ैसले ने पूरी दुनिया का ध्यान अपनी ओर आकर्षित किया था।

साथ ही अपने इस कदम से वे बुजुर्गों के लिए सम्मानजनक मौत का रास्ता खोल गए हैं। उनकी मौत की  पुष्टि मरने के अधिकार के लिए काम कर रही संस्था ने की है।

डेविड गुडऑल लंदन में पैदा हुए थे और वो बॉटनी और इकोलॉजी के प्रख्यात वैज्ञानिक थे। 3 मई को डेविड ने ऑस्ट्रेलिया में अपने घर से विदा ली थी। वो अपनी ज़िंदगी का अंत करने के लिए दुनिया के दूसरे छोर पर चले गए थे। उन्हें कोई बड़ी बीमारी नहीं थी, लेकिन वो अपने जीवन का सम्मानजनक अंत चाहते थे। उनका कहना था कि उनकी आज़ादी छिन रही है और इसीलिए उन्होंने ये फ़ैसला लिया है। डेविड अपनी मौत से कुछ देर पहले ही उन्होंने कहा था कि वो अपने जीवन का अंत करके ख़ुश हैं। अपने कई परिजनों से घिरे गुडऑल ने कहा, “बीते लगभग एक साल से मेरा जीवन बहुत अच्छा नहीं रहा है और मैं इसका अंत करके बहुत ख़ुश हूं।”

उन्होंने कहा, “मेरी मौत को जो भी प्रचार मिल रहा है मुझे लगता है कि उससे बुज़ुर्गों के लिए इच्छामृत्यु के अधिकार की मांग को बल मिलेगा। मैं यही चाहता हूं।”एक्ज़िट इंटरनैशनल नाम के एक संगठन ने गुडऑल को अपने जीवन का अंत करने में मदद की है। संस्था के संस्थापक फ़िलीप नीत्ज़े ने कहा, “बेसल के लाइफ़ साइकल क्लीनिक में विद्वान वैज्ञानिक का शांतिपूर्वक निधन 10.30 बजे (जीएमटी) हुआ।”गुडऑल अपने अंतिम समय में काग़ज़ी कार्रवाई को लेकर झुंझलाहट में थे। नीत्ज़े के मुताबिक डेविड ने कहा, “इसमें कुछ ज़्यादा ही समय लग रहा है।”

मौत के स्विट्जरलैंड ही क्यों चुना?
स्विट्जरलैंड ने 1942 से ‘असिस्टेड डेथ’ को मान्यता दी हुई है। कई अन्य देशों ने स्वेच्छा से अपने जीवन को ख़त्म करने (इच्छा मृत्यु) के क़ानून तो बनाए हैं, लेकिन इसके लिए गंभीर बीमारी को शर्त के रूप में रखा है। ऑस्ट्रेलियन मेडिकल एसोसिएशन ‘असिस्टेड डाइंग’ का कड़ा विरोध करता है और इसे अनैतिक मानता है। एसोसिएशन के अध्यक्ष डॉ. माइकल गैनन कहते हैं, ” डॉक्टरों को लोगों को मारना नहीं सिखाया जाता। ऐसा करना ग़लत है। ये सोच हमारी ट्रेनिंग और नैतिकता से गहराई से जुड़ी है।”

गुडऑल ने अंतिम भोजन फ़िश एंड चिप्स के साथ चीज़केक का किया और उन्होंने बीथोवन की ‘ओड टू जॉय’ संगीत सुना।  लंदन में पैदा हुए डेविड गुडऑल कुछ हफ्ते पहले तक पश्चिमी ऑस्ट्रेलिया के पर्थ में अपने एक छोटे से फ़्लैट में अकेले रहते थे। उन्होंने 1979 में नौकरी छोड़ दी थी, लेकिन इसके बाद वो लगातार फ़ील्ड वर्क में लगे रहे।हाल के सालों में उन्होंने ‘इकोलॉजी ऑफ़ द वर्ल्ड’ नाम की 30 वॉल्यूम की पुस्तक सिरीज़ का संपादन किया था।

102 साल की उम्र में 2016 में उन्होंने पर्थ के एडिथ कोवान विश्वविद्यालय परिसर में काम करने के संबंध में क़ानूनी लड़ाई जीती। यहां वो अवैतनिक मानद रिसर्च असोसिएट के तौर पर काम कर रहे थे। डॉ. गुडऑल ने अपनी ज़िंदगी को ख़त्म करने का फ़ैसला बीते महीने हुई एक घटना के बाद लिया। एक दिन वो अपने घर पर गिर गए और दो दिन तक किसी को नहीं दिखे। इसके बाद डॉक्टरों ने फ़ैसला किया कि उन्हें 24 घंटे की देखभाल की ज़रूरत है और उन्हें अस्पताल में भर्ती होना होगा।एक्ज़िट इंटरनेशलन से जुड़ी कैरल ओ’नील कहती हैं, “वे स्वतंत्र व्यक्ति रहे थे. हर समय अपने आसपास किसी को वो नहीं चाहते थे। वो नहीं चाहते थे कि कोई अजनबी उनकी देखभाल करे।”

 

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