उधर, रूस भी अपने लेजर हथियारों की क्षमता बढ़ाने की एक बड़ी योजना पर अमल कर रहा है। जानकारों के मुताबिक रूस में लेजर हथियार बनाने का कार्यक्रम 1970 के दशक में ही शुरू किया गया था। 1981 में ऐसे उपग्रह भेदी हथियारों के परीक्षण भी किए गए। लेकिन सोवियत संघ के बिखराव के साथ ये प्रोजेक्ट ठहर गया था। 2003 में इसे फिर शुरू किया गया, लेकिन अब इसमें नई तेजी आई है। रूस ने ए-60 नाम का एक लेजर सिस्टम तैयार किया है। इसके अलावा उसने तीन और ऐसे लेजर हथियार तैयार किए हैं, जिन्हें जमीन से दागा जा सकता है।
मिसाइलों को भी गिरा सकते हैं लेजर हथियार
विशेषज्ञों का कहना है कि लेजर हथियार कई मामलों में मिसाइल जैसे हथियारों से अधिक कारगर हो सकते हैं। इनके जरिए तुरंत निशाना साधा जा सकता है, बिल्कुल सटीक निशाना लगाया जा सकता है, और जरूरत के मुताबिक तुरंत उनकी क्षमता बढ़ाई जा सकती है। हालांकि शुरुआत में उन्हें विकसित करना महंगा पड़ता है, लेकिन एक बार क्षमता आ जाने के बाद उनका इस्तेमाल बहुत सस्ता हो जाता है। लेकिन इन हथियारों की खामी यह है कि इनके इस्तेमाल में बिजली की भारी खपत होती है, दूरी बढ़ने के साथ इन हथियारों की मारक क्षमता कमजोर पड़ने लगती है, और मौसम का इन पर काफी असर होता है।
लॉकहीड मार्टिन भी जुटी
जानकारों का कहना है कि लेजर तकनीक नई नहीं है। लेकिन अब बड़ी ताकतों के बीच हथियारों में इसके इस्तेमाल पर ज्यादा जोर देखने को मिल रहा है। अमेरिका में इन हथियारों के उपयोग की नई संभावनाओं पर शोध चल रहा है। अमेरिकी कंपनी लॉकहीड मार्टिन टैक्टिकल एयरबोर्न लेजर सिस्टम प्रोजेक्ट पर काम कर रही है। ये हथियार हर तरह की मिसाइल को हवा में ही मार गिराने में सक्षम होगा। लॉकहीड मार्टिन का ये प्रोजेक्ट 2021 में ही पूरा होना था। लेकिन अब बताया गया है कि यह 2023 में पूरा होगा।