NationalScience & Tech.technical news

नौसेना ने ब्रह्मोस मिसाइल का किया सफल परीक्षण, सेना की बढ़ेगी ताकत

नई दिल्ली। भारतीय नौसेना ने अरब सागर में अपने युद्धपोत से ब्रह्मोस मिसाइल का सफल परीक्षण किया है। इसके बूस्टर को DRDO द्वारा डिजाइन किया गया है। इन दोनों यंत्रों को देश में विकसित करने से काफी पैसे बचेंगे। क्योंकि अभी तक ये रूस (Russia) से आयात होते थे। लेकिन ये की डिजाइनिंग डीआरडीओ ने की है। इन दोनों यंत्रों को देश में विकसित करने से काफी पैसे बचेंगे। क्योंकि अभी तक ये रूस से आयात होते थे। लेकिन अब भारत मे बनेंगे।

आत्मनिर्भर भारत योजना के तहत बनाए गए यंत्र

नौसेना के अधिकारियों ने बताया कि मिसाइल ने अरब सागर में सफलता पूर्वक सटीक हमला किया। ब्रह्मोस मिसाइल का परीक्षण कोलकाता श्रेणी के निर्देशित मिसाइल विध्वंसक युद्धपोत से किया गया। मिसाइल में स्वदेशी सामग्री बढ़ाने पर ब्रह्मोस एयरोस्पेस लगातार काम कर रहा है। मिसाइल का सफल परीक्षण आत्मनिर्भरता के प्रति देश की प्रतिबद्धता को मजबूत करता है। मिसाइल में स्वदेशी सामग्री बढ़ाने पर ब्रह्मोस एयरोस्पेस लगातार काम कर रहा है।

जानिए क्या है इसकी खासियत-

आपको बता दें कि ‘ब्रह्मोस’ दो नदियों के नाम को जोड़कर बना है, भारत की ब्रह्मपुत्र और रूस की मस्कोवा। ब्रह्मोस दुनिया की सबसे शक्तिशाली मिसाइलों में से एक है जो भारतीय रक्षा अनुसंधान और विकास संगठन (DRDO) और रूसी संघ के NPO मशीनोस्ट्रोयेनिया के बीच एक संयुक्त उद्यम में विकसित किया गया है। यह एक सुपरसोनिक क्रूज मिसाइल है जिसे पनडुब्बी, जहाज, हवाई जहाज, जेट या जमीन से भी लॉन्च किया जा सकता है। साथ ही यह दुनिया की सबसे तेज सुपरसोनिक क्रूज मिसाइल है।

डीआरडीओ या नौसेना ने यह नहीं बताया है कि सीकर किस तरह का है. उससे मिसाइल की सटीकता में कितना फायदा हुआ। लेकिन ब्रह्मोस मिसाइल के नौसैनिक वर्जन में लगे स्वदेशी बूस्टर को बनाने वाली नागपुर की कंपनी इकोनॉमिक एक्सप्लोसिव लिमिटेड (EEL) के एक वरिष्ठ अधिकारी ने नाम न प्रकाशित करने की शर्त पर बताया कि स्वदेशी बूस्टर लगाने से लागत आधे से कम हो जाएगी।

मिसाइल में क्या होता है सीकर –

सीकर किसी भी मिसाइल की सबसे जरूरी यंत्र होता है. यह मिसाइल की सटीकता को तय करता है। यानी मिसाइल टारगेट पर 100 फीसदी सटीकता से हमला कर पाएगा या नहीं। इस टेक्नोलॉजी के बारे में कोई भी देश किसी अन्य देश को जानकारी नहीं देता.।

तकनीक के रहस्य को छिपा कर रखा जाता है। अगर भारत ने यह तकनीक बना ली है, तो इसका मतलब ये है कि अब विदेश से सीकर तकनीक को आयात करने की जरुरत नहीं है। सीकर को लेकर भारतमें काम 2018 में शुरू हो गया था। डीआरडीओ और हैदराबाद की रिसर्च सेंटर इमारत (RCI) मिलकर इसे बना रहे थे।

कैसे काम करता है –

मिसाइल की चोंच पर लगी यह टेक्नोलॉजी असल में उसे टारगेट तक पहुंचने के लिए गाइड करता है। गाइडेंसके लिए जो कमांड मिसाइल को कंट्रोल सेंटर से दिए जाते हैं। उसी आधार पर सीकर काम करता है। कुछ मिसाइलों में यह गाइडेंस ऑटोपॉयलट मोड पर इंटर्नल कंप्यूटर करता है। कुछ मिसाइलों को बाहर से कमांड देना होता है।

सीकर मिसाइल के इंटर्नल कंप्यूटर में फीड डेटा के आधार पर गाइड करता है। चोंच पर लगे सेंसर ही  मिसाइल की सटीकता और रास्ता तय करते हैं। ये सेंसर तीन प्रकार के हो सकते हैं। इंफ्रारेड, राडार या फिर जीपीएस आधारित। इनमें से कौन सा यंत्र लगाना है वो टारगेट और मिसाइल की रेंज के आधार पर लगाया जाता है।

नौसेना की बढ़ेगी ताकत-

भारतीय नौसेना के विध्वंसक और फ्रिगेट सहित तमाम जहाजों के लगभग सात वर्ग ब्रह्मोस एंटी-शिप मिसाइलों से लैस हैं। भारतीय सेना भी ब्रह्मोस इकाइयों की कम से कम तीन रेजीमेंटों से लैस है। अत्यधिक बहुमुखी ब्रह्मोस का उपयोग जहाजों, भूमि-आधारित लक्ष्यों और रडार स्टेशनों सहित विभिन्न प्रकार के लक्ष्यों के लिए किया जा सकता है।

=>
=>
loading...
BRIJESH SINGH
the authorBRIJESH SINGH