नई दिल्ली। देश को हिला देने वाले निठारी हत्याकांड मामले में सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार को ऐतिहासिक फैसला सुनाया। अदालत ने मुख्य आरोपी सुरेंद्र कोली को सभी आरोपों से बरी करते हुए उसकी उम्रकैद की सजा रद्द कर दी। इस फैसले के साथ ही कोली की रिहाई का रास्ता पूरी तरह साफ हो गया है।
सुप्रीम कोर्ट ने क्या कहा
मुख्य न्यायाधीश डी.वाई. चंद्रचूड़ की नहीं, बल्कि जस्टिस बी.आर. गवई, जस्टिस सूर्यकांत और जस्टिस विक्रम नाथ की तीन सदस्यीय पीठ ने इस मामले की सुनवाई की। बेंच ने कहा- “जब आरोपी बाकी 12 मामलों में बरी हो चुका है, तो एकमात्र मामले में उसे दोषी ठहराना न्याय के सिद्धांतों के खिलाफ होगा। यह न्याय का उपहास होगा।”
जस्टिस विक्रम नाथ ने फैसला सुनाते हुए कहा- “2011 के पुनर्विचार आदेश और इलाहाबाद हाईकोर्ट का फैसला रद्द किया जाता है। याचिकाकर्ता को सभी आरोपों से मुक्त किया जाता है। उसकी सभी सजाएं समाप्त की जाती हैं। उसे तत्काल रिहा किया जाए।”
क्या था निठारी कांड
2005 से 2007 के बीच, नोएडा के निठारी गांव में बच्चों और महिलाओं के गायब होने, बलात्कार और हत्या के कई मामले सामने आए थे।
जांच में सामने आया कि कोली उस समय मुख्य आरोपी मोनिंदर सिंह पंढेर का नौकर था।
सीबीआई ने कोली पर 13 मामलों में आरोप लगाए थे।
इनमें से 12 मामलों में वह पहले ही बरी हो चुका था, जबकि एक मामले में उसे उम्रकैद की सजा मिली थी।
अब सुप्रीम कोर्ट ने क्यूरेटिव पिटीशन पर सुनवाई करते हुए उस सजा को भी रद्द कर दिया।
सुनवाई के दौरान क्या हुई बहस
सुप्रीम कोर्ट ने साक्ष्यों की विश्वसनीयता पर गंभीर सवाल उठाए।जस्टिस बी.आर. गवई ने कहा, “जब अन्य मामलों में दोष सिद्ध नहीं हुआ, तो अकेले एक केस में सजा देना विरोधाभासी है।” जस्टिस विक्रम नाथ ने भी कहा, “केवल आरोपी के बयान और रसोई के चाकू की बरामदगी के आधार पर हत्या जैसे गंभीर अपराध का दोष सिद्ध नहीं किया जा सकता। क्या रसोई का चाकू हड्डियाँ काट सकता है?”
कोली की अपीलों का सफर
2011: सुप्रीम कोर्ट ने कोली की उम्रकैद की सजा बरकरार रखी।
2014: पुनर्विचार याचिका खारिज।
अक्टूबर 2024: कोली ने क्यूरेटिव पिटीशन दाखिल की।
नवंबर 2025: सुप्रीम कोर्ट ने 2011 का फैसला रद्द कर कोली को बरी किया।
आगे क्या
सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बाद जेल प्रशासन को तुरंत रिहाई की प्रक्रिया शुरू करनी होगी।
इस फैसले के साथ निठारी कांड के सभी मामलों में कोली अब बरी हो चुका है।
कोर्ट के इस आदेश ने एक बार फिर जांच एजेंसियों की भूमिका, साक्ष्यों की गुणवत्ता और न्यायिक प्रक्रिया पर बहस छेड़ दी है।




