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सरकार ने वित्तीय घाटा को 3.5 फीसदी तक रखने का लक्ष्य निर्धारित: रघुराम राजन

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नई दिल्ली। भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई) के गर्वनर रघुराम राजन ने शनिवार को दरों में कटौती के बारे में बिना कोई खुलासा किए कहा कि मौद्रिक नीति में वे सरकार के वित्तीय घाटा को पाटने के लक्ष्य को ध्यान में रखेंगे। राजन ने कहा, सरकार ने वित्तीय घाटा को 3.5 फीसदी तक रखने का लक्ष्य निर्धारित किया है और बाजार और आरबीआई इसे पूरा करने को लेकर आश्वस्त हैं। इससे हमारी मौद्रिक नीति पर क्या असर पड़ेगा, यह जानने के लिए आपको इंतजार करना होगा।

वित्तवर्ष 2016-17 की पहली द्विमासिक मौद्रिक नीति 5 अप्रैल को जारी की जाएगी। केंद्रीय वित्तमंत्री अरुण जेटली, वित्त राज्यमंत्री जयंत सिन्हा, आरबीआई के शीर्ष अधिकारी और केंद्रीय बैंक के बोर्ड के गर्वनरों के बीच शनिवार को हुई बैठक के बाद राजन ने पत्रकारों से बात करते हुए यह बातें कही। राजन ने कहा कि मंदी से उबरने में अभी हमें वक्त लगेगा, खासतौर से औद्योगिक उत्पादन के आंकड़ों से पता चलता है कि इसमें लगातार तीसरे महीने भी गिरावट देखी गई। यह आंकड़े केंद्रीय सांख्यिकी संस्थान ने शुक्रवार को जारी किए थे।

राजन ने कहा, औद्योगिक उत्पादन के आंकड़े निराशाजनक है। लेकिन कुल मिलाकर विस्तृत तस्वीर को देखें तो हमारी अर्थव्यवस्था मजबूती की तरफ बढ़ रही है। इस बैठक में विचार-विमर्श का एक महत्वपूर्ण विषय बैंकों का फंसा हुआ कर्ज भी था। खासतौर पर उद्योग जगत द्वारा लिए गए कर्ज को जानबूझकर नहीं चुकाने का मामले पर चर्चा की गई। इसके अलावा निर्यात में पिछले 13 महीनों से लगातार जारी गिरावट पर भी चर्चा की गई। राजन ने बताया, फंसे हुए कर्जे दो तरह के हैं। एक वह है जो मंदी का नतीजा है, जोकि अर्थव्यवस्था में तेजी आते ही वापस मिल जाएगी। लेकिन ये जो दूसरी तरह का कर्ज फंसा हुआ है, वह व्यक्ति विशेष के दुराचार का नतीजा है।

उन्होंने कहा, हम ऐसी गतिविधियों के बारे में बढ़ाचढ़ाकर बात करना नहीं चाहते, क्योंकि इससे व्यापारिक गतिविधियों में बाधा उत्पन्न होगी। इसके नतीजे में ऐसा हो सकता है कि बैंक उदारता से नये कर्ज देने में विचलित होने लगेंगे। लेकिन फंसे हुए कर्जो का बढ़ता बोझ हम सब के चिंता का विषय है। आरबीआई के अनुमान के मुताबिक, सभी वाणिज्यिक बैंकों का कुल फंसा हुआ कर्ज (एनपीए) कुल जमा रकम का 14.1 फीसदी है, जिसकी कीमत कुल 9.5 लाख करोड़ रुपये (9,455 अरब रुपये) है। उद्योगपति विजय माल्या द्वारा देश छोड़कर भाग जाने से सरकार को चौतरफा आलोचना का सामना करना पड़ रहा है, क्योंकि भारतीय स्टेट बैंक के नेतृत्व में 17 बैंकों के समूह को माल्या से 9,000 करोड़ रुपये वसूल करना है जो उन्होंने उधार लिया था।

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