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चंपारण के किसान आंदोलन से गांधी को मिला था वो नाम जिस नाम से वो आज भी जाने जाते हैं

सौ साल पहले महात्मा गांधी किसानों को अन्याय से मुक्ति दिलाने के लिए 10 अप्रैल, 1917 में चंपारण पहुंचे थे।

आज सुबह से चंपारण का नाम चर्चा में है। आखिर चंपारण क्यों मशहूर है। चंपारण सत्याग्रह की वजह से देश के राष्ट्रपिता मोहन दास करमचंद्र गांधी एक ऐसे नाम से पहचाने गए कि मृत्यु के 70 साल बाद भी आज उसी नाम से जाने जाते हैं। क्या आप उस नाम को जानते हैं?

चंपारण बिहार राज्य का जिला है। भारत में जब अंग्रेजी शासन था तब 10 जून 1866 को चंपारण का जिला बनाया गया था। भारत की आजादी के बाद वर्ष 1971 में चंपारण दो जिलों में विभाजित हो गया था। एक का नाम पूर्वी चंपारण और दूसरे का पश्चिमी चंपारण दिया गया। पूर्वी चंपारण का मुख्यालय मोतिहारी और पश्चिमी चंपारण का बेतिया है। चंपारण की जीवनरेखा गंडक नदी है।

सौ साल पहले महात्मा गांधी किसानों को अन्याय से मुक्ति दिलाने के लिए 10 अप्रैल, 1917 में चंपारण पहुंचे थे। महात्मा गांधी ने अंग्रेजों के खिलाफ उन किसानों के अधिकारों के लिए लड़ने के उद्देश्‍य से चंपारण सत्याग्रह का शुभारंभ किया था, जिन्‍हें नील की खेती करने के लिए विवश किया गया था।

वजह साफ थी चंपारण में नील से अच्छी-खासी आमदनी होती थी उसे नकदी फसल माना जाता था। इसलिए नील की खेती के लिए किसानों पर दबाव बनाया जाता था। उस वक्त खेती के लिए तीन कठिया व्यवस्था लागू थी। जिसमें किसान को अपनी खेती की जमीन के 15 प्रतिशत हिस्से में नील की खेती करनी पड़ती थी। उस पर तुर्रा यह कि किसान खुद के उगाए नील को बाहर नहीं बेच सकते थे। इन्हे बेहद कम कीमत पर जमीन मलिक को ही बेचना पड़ता था। इसके साथ ही नील की खेती करने से खेत की उर्वरता भी कम हो जाती थी।

इन सभी से आजादी दिलाने के लिए महात्मा गांधी ने अपना सत्याग्रह शुरू किया। गांधीजी ने किसानों को अहिंसात्मक और असहयोगात्मक रवैया अपनाने का आग्रह किया। जिससे किसानों में एकता बढ़ी।

ऐसा करने से उस वक्त की अंग्रेज सरकार घबरा गई और किसानों के शिकायतों की जांच के लिए अंग्रेज सरकार ने एक समिति बनाई। जिसमें गांधीजी भी एक सदस्य के रूप में थे। समिति की सिफारिशों के आधार पर चंपारण कृषि अधिनियम (चंपारण एग्रेरियन बिल) बना। 1 मई 1918 से चंपारण के किसानों को सौ साल के नील शोषण से मुक्ति मिल गई।

चंपारन आंदोलन मे गांधी जी के कुशल नेतृत्व से प्रभावित होकर मशहूर कवि व लेखक रवीन्द्रनाथ टैगोर ने उन्हें महात्मा के नाम से संबोधित किया। तभी से लोग उन्हें महात्मा गांधी कहने लगे।

10 अप्रैल, 2018 को चंपारण सत्याग्रह के शताब्दी समारोह के समापन के रूप में चिन्‍हित किया गया है और इसे ‘सत्याग्रह से स्‍वच्‍छाग्रह’ अभियान के माध्यम से मनाया जा रहा है।

प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने बिहार में चंपारण सत्याग्रह शताब्दी समापन समारोह पर ‘सत्याग्रह से स्वच्छाग्रह’ कार्यक्रम में मोतिहारी में 20,000 स्‍वच्‍छाग्रहियों अथवा स्‍वच्‍छता के दूतों को संबोधित किया। इस अवसर पर प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने कहा, पिछले सौ वर्ष में भारत की 3 बड़ी कसौटियों के समय बिहार ने देश को रास्ता दिखाया है। जब देश गुलामी की जंजीरों में जकड़ा हुआ था, तो बिहार ने गांधी जी को महात्मा बना दिया, बापू बना दिया।

प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने कहा, स्वतंत्रता के बाद जब करोड़ों किसानों के सामने भूमिहीनता का संकट आया, तो विनोबा जी ने भूदान आंदोलन शुरू किया। तीसरी बार, जब देश के लोकतंत्र पर संकट आया, तो जयप्रकाश जी उठ खड़े हुए और लोकतंत्र को बचा लिया।

स्‍वच्‍छाग्रही गांव स्तर पर स्वच्छता के प्रति सामुदायिक दृष्टिकोण (सीएएस) को क्रियान्वित करने वाले जमीनी स्‍तर के अत्‍यंत महत्‍वपूर्ण कार्यकर्ता और अभिप्रेरक हैं। स्‍वच्‍छाग्रही खुले में शौच मुक्त राष्ट्र के लक्ष्‍य को प्राप्त करने की दिशा में होने वाली प्रगति की दृष्टि से अत्‍यंत महत्वपूर्ण माने जाते हैं।

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