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एमसीएक्स पर कॉटन वायदा 2 हफ्ते में लगभग 1500 रुपये टूटा

नई दिल्ली, 22 जून (आईएएनएस)| अमेरिका और चीन के बीच जारी व्यापारिक तनातनी से दुनियाभर में रूई (कॉटन) के दाम में भारी गिरावट दर्ज की गई है। भारतीय वायदा बाजार में पिछले दो हफ्तों में कॉटन के सौदे में तकरीबन 1500 रुपये प्रति गांठ (170 किलो) की गिरावट आई है। वहीं, अंतर्राष्ट्रीय बाजार में कॉटन का भाव करीब 13 फीसदी फिसला है।

चीन की ओर से अमेरिकी कॉटन के आयात पर 25 फीसदी शुल्क लगाए जाने से कॉटन के दाम में नरमी देखी जा रही है।

हालांकि घरेलू हाजिर बाजार में रूई के दाम में कोई ज्यादा गिरावट नहीं आई है, मगर भाव एक तरह से रुका हुआ है।

मल्टी कमोडिटी एक्सचेंज पर जुलाई वायदा शुक्रवार को लुढ़क कर 22,120 रुपये प्रति गांठ रहा, जबकि 11 जून को इसी वायदा सौदे में ऊपरी भाव 23610 रुपये प्रति गांठ रहा। इस प्रकार दो हफ्ते में 1490 रुपये प्रति गांठ की नरमी दर्ज की गई है।

वहीं अंतर्राष्ट्रीय बाजार इंटरकान्टिनेंटल एक्सचेंज (आईसीई) पर कॉटन का जुलाई एक्सपायरी वायदा दो सप्ताह में 13 फीसदी से ज्यादा टूट चुका है। जुलाई वायदा शुक्रवार को पिछले सत्र के मुकाबले 0.53 फीसदी की गिरावट के साथ 83.65 सेंट प्रति पाउंट पर कारोबार कर रहा था, जबकि इससे पहले 83.19 सेंट प्रति पाउंड पर खुलकर 83.12 सेंट तक लुढ़का। पिछले दो हफ्ते इस वायदा सौदे में 95 सेंट से ज्यादा की बढ़त देखी गई थी।

अमेरिका द्वारा मार्च महीने में इस्पात और अल्युमीनियम के आयात पर क्रमश: 25 और 10 फीसदी का शुल्क लगाए जाने से दुनियाभर के देशों के बीच पैदा हुए व्यापारिक हितों के टकराव का सिलसिला अभी थमा नहीं है।

इस बीच भारत भी अमेरिका से आयातित 29 वस्तुओं पर आयात शुल्क बढ़ाकर अमेरिका की संरक्षणवादी नीति के खिलाफ अपना रुख स्पष्ट कर दिया है।

गौरतलब है कि भारत अमेरिका को इस्पात और अल्युमीनियम व इससे निर्मित वस्तुओं का निर्यात करता है। अमेरिका द्वारा आयात शुल्क लगाए जाने से भारतीय उद्योग प्रभावित हुआ है। भारत ने इससे पहले विश्व व्यापार संगठन के मंच पर भी अमेरिकी संरक्षणवादी नीतियों के खिलाफ अपना विरोध जताया है।

हालांकि भारत ने जिन खाद्य वस्तुओं का आयात शुल्क बढ़ाया है, उनमें बादाम-पिस्ता, अखरोट के अलावा मसूर, चना जैसे दलहन कृषि उत्पाद शामिल हैं।

बाजार के जानकार बताते हैं कि भारत में पिछले दो साल से दलहन का उत्पादन काफी ज्यादा रहा है और भारत अमेरिका के बजाय कनाडा और आस्ट्रेलिया से दलहन की अपनी जरूरतों की पूर्ति करता रहा है, इसलिए भारतीय बाजार पर इससे ज्यादा फर्क नहीं पड़ेगा।

मुंबई के एक कमोडिटी विशेषज्ञ ने बताया कि जहां तक कपास व रूई की बात है तो भारत में रूई का बाजार आगे तेज हो सकता है, क्योंकि चीन अगर अमेरिका से रूई का आयात कम करेगा तो निस्संदेह वह भारत से ज्यादा आयात करेगा। यही कारण है कि देश के हाजिर बाजार में कीमतों में सुधार देखा जा रहा है।

उत्तर भारत में जे-34 वेरायटी कॉटन 20 रुपये ऊंचे भाव 4,750 रुपये प्रति मन (37.32 किलो) था। जबकि गुजरात में एस-शंकर 29 एमएम रूई का भाव 47,000-47,500 रुपये प्रति कैंडी (356 किलो) था। हालांकि पिछले दो सप्ताह के ऊपरी स्तर से 700 रुपये प्रति कैंडी की नरमी दर्ज की गई।

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