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दबाव में अपना सर्वश्रेष्ठ मैच याद करती हूं : पवित्रा

नई दिल्ली, 15 अगस्त (आईएएनएस)| पहली बार एशियाई खेलों में हिस्सा लेने जा रहीं भारत की महिला मुक्केबाज पवित्रा का कहना है कि वह इन खेलों में दबाव तो महसूस कर रही हैं, लेकिन जब भी उनको लगता है कि उनका आत्मविश्वास डगमगा रहा तो वह अपने अभी तक के सर्वश्रेष्ठ मैच के बारे में सोच इसे दोबारा हासिल कर लेती हैं।

हर खिलाड़ी की तरह पवित्रा का सपना भी इन खेलों में स्वर्ण पदक जीतने का है। 2003 से मुक्केबाजी की शुरुआत करने वाली पवित्रा कहती हैं कि उन्हें काफी समय बाद एशियाई खेलों में भारत का प्रतिनिध्तिव करने का मौका मिला है और इस मौके को वह जाया नहीं करना चाहती।

18 अगस्त से इंडोनेशिया के जकार्ता और पालेमबांग में शुरू हो रहे एशियाई खेलों के लिए रवाना होने से पहले पवित्रा ने आईएएनएस से फोन पर बातचीत में कहा कि वह मुश्किल से मिले इस मौके को पूरी तरह से भुनाना चाहती हैं।

60 किलोग्राम भारवर्ग में भारत का प्रतिनिधित्व करने वाली पवित्रा ने कहा, इतने वर्षो बाद मुझे जब यह मौका मिला है। मेरी कोशिश है कि मैं अपना 100 फीसदी दूं और स्वर्ण पदक जीत कर आऊं। मेरा लक्ष्य सिर्फ स्वर्ण जीतना है।

पवित्रा ने कहा, पहली बार जा रही हूं इसलिए थोड़ा दबाव भी है, लेकिन मैं अपने आप को प्रेरित करती हूं कि नहीं मैं अच्छा कर सकती हूं। मुझे बस अपनी तैयारी और तकनीक पर ध्यान देना है ताकि मैं वहां अच्छे से खेल सकूं। मैं जब कमजोर पड़ती हूं तो अपने अभी तक के सबसे अच्छे मैच के बारे में सोचती हूं कि मैंने उस दिन अपना सर्वश्रेष्ठ दिया था तो मैं ऐसा दोबारा भी कर सकती हूं। ऐसा सोच कर मेरा डर खत्म हो जाता है।

पवित्रा कहती हैं कि एशियाई खेलों में जो मुक्केबाज आ रही हैं उनसे एक कदम आगे रहने के लिए उन्हें अपनी तकनीकी के अलावा अपनी स्पीड को बेहतर करने की जरूरत तभी वह उन्हें पछाड़ सकती हैं।

बकौल पवित्रा, मेरी कोशिश अपने आप को मजबूत करने की है। कोच राफेल सर बताते हैं कि तकनीक ज्यादा अहम है और इसलिए मैंने अपनी तकनीक को सुधारने पर ज्यादा ध्यान दे रही हूं। मेरी तकनीक जितनी अच्छी होगी मैं उतना ज्यादा अच्छा खेल पाऊंगी और अपने विपक्षी खिलाड़ी को अपने कब्जे में ले पाऊंगी।

उन्होंने कहा, इसके अलावा मुझे अपनी स्पीड पर भी ज्यादा ध्यान देना है। मेरे सामने कोई पंच आया तो मुझे जल्दी से डिफेंड कर पलटवार करना है और इसके लिए काफी स्पीड की जरूरत होती है। मुझे इस पर काम करना है तभी मैं बाकी देशों की मुक्केबाजों से एक कदम आगे रह सकती हूं। पंच तो सामने वाला भी मारेगा, लेकिन तुरंत काउंटर करना आसान नहीं होता और इसी पर माहरथ हासिल करने पर मेरा लक्ष्य है।

पवित्रा जब 10वीं कक्षा में थी तब स्कूल में एक स्टेट चैम्पियनशिप का लेटर आया था तब स्कूल के अध्यापकों ने पूछा था कि कौन मुक्केबाजी करेगा? तब पवित्रा ने पहल की और अपना सफर शुरू किया।

उस टूर्नामेंट में साई के कोच भी आए थे। उन्होंने पवित्रा को सलाह दी कि वह अगर खेल को गंभीरता से लेती हैं तो अच्छा कर सकती हैं। वहां से उन्होंने ट्रायल दी और हिसार साई में एडमिशन हुआ।

रेवाड़ी के पास कोटनी गांव की रहने वाली पवित्रा के माता पिता चाहते थे कि उनकी बेटी खेलों में आगे जाए और उन्हीं ने पवित्रा से कहा कि दुनिया की परवाह छोड़ वह खेल पर ध्यान दें।

पवित्रा कहती हैं कि काफी लंबे समय से उनका सपना एशियाई खेलों में भारत का प्रतिनिधत्व करना था जो अब पूरा हो चुका है। अब उनका लक्ष्य इन खेलों में पदक जीत ओलम्पिक में भारत का झंडा थामने का है।

उन्होंने कहा, मुझे अभी तक एशियाई खेलों में खेलना का मौका नहीं मिला था। मैं हमेशा से सोचती थी कि मैं एशियाई खेलों में हिस्सा लूं और देश के लिए पदक जीत कर आऊं। अब जबकि मेरा यह सपना पूरा हो गया है तो मेरी कोशिश है कि ओलम्पिक खेलों में हिस्सा लूं और पदक जीत कर आऊं।

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