नई दिल्ली। अमेरिकी धमकी को दरकिनार कर भारत ने रूस के साथ एस-400 मिसाइल डिफेंस सिस्टम की खरीद की डील पर साइन कर दिए। रूस के राष्ट्रपति व्लादीमिर पुतिन और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के बीच शुक्रवार को हुई 19वीं भारत-रूस वार्षिक शिखर बैठक के दौरान इस डील पर करार हुआ। भारत 5.43 अरब डॉलर यानी लगभग 40 हजार करोड रुपए में रूस से मिसाइलों के पांच स्क्वैड्रन खरीदेगा। मिसाइलों की आपूर्ति दो साल बाद शुरू हो जाएगी। यानि कि भारतीय वायुसेना को 2020 तक यह मिसाइल मिल जाएगी। S-400 दुनिया का सबसे मारक हथियार है। ये एक बार में 72 मिसाइलें दाग सकता है।
यह सिस्टम अमेरिका के सबसे एडवांस्ड फाइटर जेट एफ-35 को भी गिरा सकता है। वहीं, यह 36 परमाणु क्षमता वाली मिसाइलों को एकसाथ नष्ट कर सकता है। चीन के बाद इस डिफेंस सिस्टम को खरीदने वाला भारत दूसरा देश है। डिफेंस सिस्टम एक तरह से मिसाइल शील्ड का काम करेगा, जो पाकिस्तान और चीन की एटमी क्षमता वाली बैलिस्टिक मिसाइलों से भारत को सुरक्षा देगा। यह प्रणाली 400 किलोमीटर की दूरी से आ रही किसी भी मिसाइल को हवा में ही नष्ट कर सकती है। इसके अलावा यह 600 किलोमीटर दूर तक निगरानी करने की भी क्षमता रखती है। 5 मिनट के भीतर इस मिसाइल प्रणाली को तैनात किया जा सकता है। ऐसे में इस मिसाइल डिफेन्स सिस्टम ने भारत को अजेय बना दिया है। पाकिस्तान अक्सर भारत को परमाणु बम की धमकी देता हैं। ये मिसाइल डिफेन्स सिस्टम पाकिस्तान को उसी की धमकी का जवाब है। अगर पाकिस्तान एक साथ 36 परमाणु बम से लैस मिसाइल भी भारत की ओर छोड़ता है तो भी उसे आसमान में ही नष्ट कर दिया जाएगा।
बता दें कि यह डील भारत ने अमेरिका की उस चेतावनी के बावजूद की है जिसमें रूस से हथियार खरीदने पर डोनाल्ड ट्रंप ने भारत को आर्थिक प्रतिबंध लगाने की बात कही थी। हालांकि भारत ने रक्षा और विदेश मंत्री के स्तर पर अमेरिका से पहले ही स्पष्ट कर दिया है कि वह रूस से एस-400 मिसाइल के सौदे पर पीछे नहीं हटेगा। उसने कहा है कि रूस के साथ उसके दशकों पुराने रक्षा संबंध हैं और उससे लंबे समय से रक्षा उत्पाद खरीद रहा है तथा एस-400 मिसाइल सौदे पर भी लंबे समय से बात चल रही थी। अमेरिका ने कहा था कि वह भारत पर ‘काट्सा’ यानी ‘काउंटरिंग अमेरिका एडवसरिज थ्रू सेंक्शंस एक्ट‘ के तहत आर्थिक प्रतिबंध लगा सकता है। इस कानून में प्रावधान है कि यदि कोई भी देश रूस, ईरान या उत्तर कोरिया से हथियारों की खरीद करता है तो उसे अमेरिकी प्रतिबंधों का सामना करना पड़ेगा।