IANS News

‘भारत में संक्रमणकालीन न्याय की सख्त जरूरत’

 नई दिल्ली, 23 दिसम्बर (आईएएनएस)| कुछ खास अशांत इलाकों में सशस्त्र बल विशेष शक्तियां कानून (अफस्पा) के कठोर प्रावधानों के व्यापक दुरुपयोग के मद्देनजर भारत में संक्रमणकालीन न्याय की सख्त जरूरत है।

 यह कहना है हरियाणा के सोनीपत स्थित ओ. पी. जिंदल ग्लोबल यूनिवर्सिटी (जेजीयू) के एक प्रोफेसर का। जिंदल ग्लोबल लॉ स्कूल (जेजीएलएस)के मानवाधिकार अध्ययन केंद्र के कार्यकारी निदेशक वाई. एस. आर. मूर्ति ने ईमेल के जरिए आईएएनएस को दिए एक साक्षात्कार में कहा, “अफस्पा के साथ-साथ चाहे तो संक्रमणकालीन न्याय होना चाहिए या अफस्पा को मौजूदा बहस से निकाल ही देना चाहिए। लेकिन देश में संक्रमणकालीन न्याय की सख्त जरूरत है।”

संक्रमणकालीन न्याय की संरचना में पीड़ित होने पर भी जख्म भरने और मेल-मिलाप पर जोर दिया जाता है। इस न्याय व्यवस्था में आपराधिक अभियोजन सिलसिलेवार गैर-न्यायिक प्रक्रियाओं से पूरा होता है।

जेजीएलएस के मानवाधिकार अध्ययन केंद्र और नॉलेज सिस्टम अध्ययन केंद्र द्वारा दिसंबर में मणिपुर के लिए संभावित संक्रमणकालीन न्याय संरचना पर संपर्क कार्यक्रम का आयोजन किया गया।

अशांत पूर्वोत्तर के राज्य में कथित तौर पर 1,528 न्यायेतर हत्याएं चर्चा के केंद्र में थीं।

सर्वोच्च न्यायालय ने 2017 में केंद्रीय जांच ब्यूरो के अधिकारियों के एक विशेष जांच दल का गठन किया और प्रदेश में कथित न्यायेतर हत्याओं के मामले में प्राथमिकी (एफआईआर) दर्ज कर जांच करने का आदेश दिया।

अदालत ने 81 मामलों में एफआईआर दर्ज करने का आदेश दिया, जिनमें जांच आयोग द्वारा तहकीकात किए गए 32 और न्यायिक प्राधिकरणों द्वारा जांच किए गए 32 मामले और मुआवजा दिए जाने वाले 11 मामलों के अलावा सर्वोच्च न्यायालय के पूर्व न्यायाधीश संतोष हेगड़े की अध्यक्षता वाले आयोग द्वारा जांच किए गए छह मामले भी शामिल थे।

मूर्ति ने कहा, “भारत के कई राज्यों में लंबे समय तक संघर्ष का दौर रहा है। इन इलाकों में अफस्पा और अवैध गतिविधि (रोकथाम) अधिनियम जैसे कानून लागू होने व अन्य कारणों से माफी की संस्कृति को प्रोत्साहन समाप्त हो गया है।”

मूर्ति ने 12 साल तक राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग में विभिन्नि पदों पर अपनी सेवाएं दी है।

उन्होंने कहा, “इसके परिणामस्वरूप राज्य और उसके नागरिकों के बीच गंभीर अविश्वास पैदा हुआ। अंतत: सुरक्षा बल और आतंकियों के बीच मुठभेड़ की स्थिति उत्पन्न हुई।”

उन्होंने कहा कि किसी संक्रमणकालीन न्याय संरचना को अमलीजामा पहनाने के लिए सरकार की सक्रिय भागीदारी में भरोसे के साथ व्यापक संवाद स्थापित करने की सख्त जरूरत है।

उन्होंने कहा, “मेरा मानना है कि भारतीय मानवाधिकार आयोग और अन्य मानवाधिकार संस्थाएं ऐसी संरचना बनाने में अहम साबित हो सकते हैं।”

=>
=>
loading...