नई दिल्ली। पुलवामा में आतंकी हमले में हुई वीर जवानों की सामूहिक शहादत को लेकर जंहा पूरे देश मे रोष और गुस्सा का माहौल है वहीँ चम्बल घाटी के बीहड़ो में गम और आक्रोश के बीच बागी रहे दस्युओं का खून उबल पड़ा है। जो खुद को व्यवस्था परिवर्तन का बागी बता सीमा पर जौहर दिखाने की सरकार से मांग कर रहे हैं। कहना अतिशयोक्ति नही होगा कि चम्बल का पानी अपनी रवानी की ओर बढ़ता नजर आ रहा है।
बता दें कि बीते सप्ताह जंहा चम्बल घाटी के बेताज बादशाह रहे दस्यु सम्राट मलखान सिंह ने सरकार से आग्रह किया था कि तब के साथियों के साथ वह सीमा पर जाने को तैयार है और छिप कर वार कर रहे आतंकियों को उनकी ही शैली में जवाब देने में वह खुद को सक्षम हैं। इसी कड़ी में डाकू पानसिंह तोमर के भतीजे और लाखों के इनामी रहे बलवन्त सिंह ने भी इच्छा जताई कि जिन हाथों ने जुल्म और अत्याचार के लिए हथियार उठाये थे वह आज देश की रक्षा के लिए अपना सर्वस्व वलिदान को आतुर हैं बस हमारी सरकार और उसके नुमाइंदे इजाजत भर दें फिर आतंक और आतंकी घाटी से नामोनिशान मिट न जाए। आज इसी क्रम में दस्यु क्वीन रहीं और ग्रहणी जीवन विता रही रेनू यादव ने भी देश के मान और सम्मान की रक्षा के लिए अपने बचे-खुचे साथियो के साथ घाटी के कूच की इजाजत सरकार से मांगी है।
उल्लेखनीय है कि चम्बल घाटी के दामन पर लगे निर्दोषो के खून के धब्बों के बीच आत्मसमर्पित जीवन बिता रहे दस्यु एकबार फिर देश भक्ति भावना से ओत प्रोत होकर आतंकियों से निपटने को मचल उठे हैं। यहां के नवयुवको में देशभक्ति की भावना इस कदर समाई हुई है कि आज भी सेना में जाना उनकी पहली पसंद बनी हुई है। हो भी क्यों न इतिहास बताता है कि 1857 की क्रांति में अंग्रेजी हुकूमत को परास्त करने वाली छापामार युद्ध शैली का आरम्भ इसी सरजमी पर किया गया था। इससे पूर्व मराठा सरदारों ने मुगलो से संघर्ष में इसी नीति का इस्तेमाल कर मरतभूमि और स्वाभिमान की रक्षा की थी।