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कारगिल विजय दिवस: 15 गोलियां खाकर भी पाकिस्तानी सैनिकों पर टूट पड़े थे योगेंद्र सिंह यादव

लखनऊ। आज पूरा देश कारगिल युद्ध में देश के लिए शहीद होने वाले सैनिकों की याद में कारगिल विजय विजय दिवस मना रहा है। 19 साल पहले 26 जुलाई के ही दिन भारतीय सेना ने कारगिल युद्ध में पाकिस्तानी सेना को धूल चटाकर विजय पताका लहराया था। 60 दिनों तक चले युद्ध में भारत के करीब 527 जवानों ने देश के लिए अपने प्राणों की आहुति दी थी। इस जीत के हीरो रहे थे सूबेदार मेजर योगेंद्र सिंह यादव। योगेंद्र यादव देश के एकमात्र ऐसे फौजी हैं जिन्हे जिंदा रहते परमवीर चक्र से सम्मानित किया गया था। 20 मई, 1999 को उन्होंने जम्मू में रिपोर्टिंग की। तब वह केवल 19 साल के थे। पाकिस्तान ने इंडियन आर्मी पर अटैक कर दिया था। योगेंद्र 18 ग्रेनेडियर्स बटालियन के साथ 22 दिन तक चले इस युद्ध में शामिल रहे। इस दौरान उन्हें 15 गोलियां लग गई थीं लेकिन इसके बाद भी वो पाकिस्तानी सैनिकों पर टूट पड़े और टाइगर हिल पर कब्ज़ा किया।

रिटायर्ड आर्मी चीफ जनरल वीके सिंह ने भी योगेंद्र सिंह यादव की बहादुरी को लेकर एक फेसबुक पोस्ट लिखी थी। अपनी एक फेसबुक पोस्ट में उन्होंने लिखा, ‘घातक कमाण्डो पलटन के सदस्य ग्रेनेडियर यादव को टाइगर हिल के बेहद अहम तीन दुश्मन बंकरों पर कब्ज़ा करने का दायित्व सौंपा गया था। ग्रेनेडियर यादव ने स्वेच्छा से आगे बढ़ कर उत्तरदायित्व संभाला जिसमे उन्हें सबसे पहले पहाड़ पर चढ़ कर अपने पीछे आती टुकड़ी के लिए रास्ता बनाना था। कुशलता से चढ़ते हुए कमाण्डो टुकड़ी गंतव्य के निकट पहुंची ही थी कि दुश्मन ने मशीनगन, RPG, और ग्रेनेड से भीषण हमला बोल दिया जिसमें भारतीय टुकड़ी के अधिकांश सदस्य मारे गए या तितर बितर हो गए, और स्वयं यादव को तीन गोलियां लगीं।

वीके सिंह ने आगे लिखा, ‘पहाड़ के ऊपर पहुंचने के बाद दुश्मन की भारी गोलाबारी ने उनका स्वागत किया। अपनी दिशा में आती गोलियों को अनदेखा कर के दुश्मन के पहले बंकर की तरफ यादव ने धावा बोल दिया। उन्होंने अपनी जान की परवाह न करते हुए उसी बंकर में छलांग लगा दी, जहां मशीनगन को 4 सदस्यों का आतंकीदल चला रहा था। ग्रेनेडियर यादव ने अकेले उन सबको मौत के घाट उतार दिया। ग्रेनेडियर यादव की साथी टुकड़ी जब उनके पास पहुंची, तो उसने पाया कि यादव का एक हाथ टूट चुका था और करीब 15 गोलियां लग चुकी थीं। ग्रेनेडियर यादव ने साथियों को तीसरे बंकर पर हमला करने के लिए ललकारा और अपनी बेल्ट से अपना टूटा हाथ बांध कर साथियों के साथ अंतिम बंकर पर धावा बोल कर विजय प्राप्त की।’

ग्रेनेडियर यादव को परमवीर चक्र दिए जाने से संबंधित एक बेहद दिलचस्प किस्सा है। उसके बारे में भी जनरल वीके सिंह ने बताया। उन्होंने लिखा, ‘विषम परिस्तिथियों में अदम्य साहस, जुझारूपन और दृढ़ संकल्प के लिए उन्हें मरणोपरांत परमवीर चक्र से नवाजा गया। समस्या बस इतनी थी कि ग्रेनेडियर योगेंद्र सिंह यादव इस अविश्वसनीय युद्ध में जीवित बच गए थे और उन्हें अपने मरणोपरांत पुरस्कार का समाचार अस्पताल के बिस्तर पर ठीक होते हुए मिला। विजय दिवस पर ग्रेनेडियर योगेंद्र सिंह यादव जैसे महावीरों को मेरा सलाम, जिन्होंने कारगिल युद्ध में भारत की विजय सुनिश्चित की।’

योगेंद्र सिंह यादव इस वक्त 18 ग्रेनेडियर्स बटालियन में सूबेदार के पद पर तैनात हैं। परमवीर चक्र सम्मान दिए जाते समय उनकी उम्र महज 19 साल थी। परमवीर चक्र पाने वाले वह सबसे युवा सैनिक हैं। उनके पिता करण सिंह यादव सेना की कुमांऊ रेजिमेंट में थे। उन्होंने देश की ओर से 1965 और 1971 के भारत-पाकिस्तान युद्ध में हिस्सा लिया था।

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the authorBRIJESH SINGH