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इंसानियत से बड़ा कोई मजहब नहीं…शव पुजारी का, कंधे मुसलमानों के

मेरठ। एक तरफ जहां पूरे देश में हिन्दू-मुस्लिमों के बीच खाई बढ़ती जा रही है। वहीँ मेरठ से एक ऐसा मामला सामने आया है जिसने हिंदू-मुस्लिम की बीच बढ़ती खाई को पाटने का काम किया है।

यहां शाहपीर गेट स्थित कायस्थ धर्मशाला में भगवान चित्रगुप्त मंदिर के पुजारी रमेशचंद्र माथुर का निधन हो गया। लॉकडाउन के चलते उनका एक बेटा दिल्ली में फंसा हुआ है जबकि एक बेटा उनके साथ रहता है जिसकी आर्थिक स्थिति अच्छी नही है।

ऐसे में आसपास के मुस्लिम समुदाय के लोग जमा हुए। एक तरफ स्वर्गीय माथुर के अंतिम संस्कार की जिम्मेदारी और दूसरी ओर रोजा इफ्तार का वक्त। ऐसे में सभी एकजुट हुए और अंतिम संस्कार की तैयारी में जुट गए। अकील अंसारी ने शव वाहन का बंदोबस्त करने की कोशिश की पर ऐसा मुमकिन नहीं हो पाया। ऐसे में वहां मौजूद मुस्लिमों ने शव को अपने कांधों पर रखा और पैदल ही सूरजकुंड स्थित श्मशान की ओर राम नाम सत्य का उच्चारण करते हुए निकल पड़े। माथुर के छोटे बेटे ने चिता को मुखाग्नि दी। सभी धार्मिक रस्मों को पूरा किया गया। यह देखकर हर कोई कह उठा इंसानियत से बड़ा कोई मजहब नहीं।

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BRIJESH SINGH
the authorBRIJESH SINGH