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मुखिया की तानाशाही से जेल विभाग की व्‍यवस्‍था ध्‍वस्‍त

इलाहाबाद के नैनी जेल, 12 मंजिल की विशालकाय इमारत, जेल का निर्माण

 

आईजी खेल में मस्त, जेलों की व्यवस्था ध्वस्त

बगैर स्वीकृत कराये ही अवकाश पर चला गया उरई का जेलर

एटा जेल अधीक्षक को एक साल से नही मिली छुट्टी  

राकेश यादव

लखनऊ। प्रदेश के कारागार मुखिया का अपने ही मातहत अधिकारियों पर कोई नियंत्रण नही है। कोई अधिकारी एक साल से तमाम आवेदनों के बावजूद अवकाश नही पा रहा है, तो कोई अधिकारी मुखिया से अवकाश स्वीकृत कराये बगैर ही भाग जा रहा है। विभागीय मुखिया की अवैध वसूली, तानाशाही एवं मनमाने रवैये से जेलों की सुरक्षा व्यवस्था पूरी तरह से अस्त-व्यस्त हो गयी है। जेलों में जेलमंत्री की तमाम हिदायतों के बावजूद वसूली का काम धड़ल्ले से चल रही है। चर्चा है कि विभाग के मुखिया किक्रेट खेलने में मस्त ओर जेलों की व्यवस्था पूरी तरह से ध्वस्त होती जा रही है। बीते सप्ताह बुंदेलखण्ड की उरई जिला से चार खूंखार बन्दी जेल की सुरक्षा व्यवस्था को चकमा देकर फरार हो गये। मिली जानकारी के मुताबिक प्रदेश की इस संवेदनशील जेल में कोई अधीक्षक तैनात ही नही था। जेल अधीक्षक का प्रभार जिला प्रषासन के एक मजिस्ट्रेट के सुपुर्द था। करीब 700 बन्दियों की क्षमता वाली इस जेल के सुरक्षा की जिम्मेदारी एक जेलर के कन्धों पर सौंपी गयी थी।

सूत्रों का कहना है कि चार खूंखार बन्दियों की फरारी के समय प्रभारी जेलर अवकाश पर थे। जेलर की जिम्मेदारी एक डिप्टी जेलर के हाथों में थी। बताया कि कारागार विभाग के मुखिया आईजी जेल अफसरों को अवकाश देने के मामले में काफी कंजूस है। सूत्रों की माने तो अवकाश स्वीकृत नही हो पाने के डर से उरई जेल के प्रभारी जेलर अपना प्रभार गुपचुप तरीके से डिप्टी जेलर को सौंपकर छुट्टी पर चले गये थे। इस सच का खुलासा चार खूंखार बन्दियों की फरारी के बाद हुई जांच में हुआ। जांच में जेल सुरक्षा कर्मियों की शिथिलता और अफसरों के अपने मातहत अधिकारियों पर कुशल नियंत्रण न होने के बात भी सामने आयी है।

सूत्र बताते है कि कारागार मुख्यालय के मुखिया ने तो विभाग की कमान संभालने के बाद से अभी तक बुंदेलखण्ड परिक्षेत्र की अभी तक किसी जेल का दौरा किया हो। यही हाल अन्य मातहत उच्च अधिकारियों का भी है। मुख्यालय के अधिकांश अधिकारियों की निगाह पष्चिम की जेलों पर ही टिकी रहती है। सूत्र बताते है कि एटा जेल में तैनात अधीक्षक को पिछले एक साल के दौरान को भी अवकाश नही दिया गया है। इस अधीक्षक ने अवकाश के लिए कई बार अवेदन किया लेकिन विभाग के मुखिया ने उन्हें निरस्त कर दिया। मुखिया के अवकाश स्वीकृत न करने की वजह से अधिकारियों में खासा आक्रोश भी है।

चर्चा है कि विभाग के मुखिया ध्यान जेलों की सुरक्षा को सुदृढ करने के बजाय किक्रेट खेलने पर अधिक है। मुखिया 11 बजे आफिस पहुंचते है और दो ढाई के बीच निकल जाते है। तीन बजे वह कारागार प्रशिक्षण के संस्थान के मैदान पर किक्रेट खेलने पहुंच जाते है। इसके वजह से अधिकारियों को उनसे मिलने के लिए काफी दिक्कते झेलनी पड़ती है। मुखिया के इस मनमाने रवैये की वजह से जेलों की सुरक्षा व्यवस्था दिनों-दिन बद्तर होती जा रही है।

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