आजकल आजादी का बड़ा बोलबाला है। मीडिया, बुद्धिजीवी ,कलाकार, लेखक, राजनेता ,सामाजिक व धार्मिक संगठन हर कोई आजादी के तराने गा रहा है । सन 1857 से 1947 तक भी आजादी के इतने परवाने इस धराधाम पर अवतरित नही हुए थे जितने की आज हुए है। आजकल समाचार पत्र पढ़ पढ़ कर न्यूज़ चैनल्स पर नेताओ के बयान और तथाकथित बड़ी बहस सुन सुन कर तो यही लगता है की फागुन की ब्यार की जगह आज़ादी की हवायें चलने लगी है । अब देखिये न, भारत में रह कर भारत का ही अंग होकर जम्मू कश्मीर के कुछ छात्र देश की राजधानी की छाती पर बैठ कर देश के संसद की गरिमा को लहूलुहान करने वाले अफजल गुरू के सम्मान में कार्येक्रम करने की आजादी रख सकते है । देश की बर्बादी के नारे लगा सकते है ।
एक समय पंजाब को देश से अलग कर खालिस्तान बनाने का सपना देखने वाले आतंकवादियों का दमन कर विजय का झंडा गाड़ने वाली तथा देश में आपातकाल लगाकर सैंकङों को कारागार में भरकर आजादी को ताला लगाने वाली कांग्रेस भी आज देश विरोधी नारे लगाने वालो की अभिव्यक्ति की आजादी का राग आलाप सकती है तो स्पष्ट है की आजादी की तेज़हवायें चलने लगी है अब पता नही कांग्रेस को वंशवाद से आजादी कब मिलेगी । इस मामले में हो रही छात्रों की धरपकड़ को ग्रहमंत्री राजनाथ सिंह कितना भी जायज़ ठहराए पर दुसरो पर दूसरे दलों ने आजादी के नाम पर केंद्र सरकार की नाक में दम किया हुआ है । सुना है पाकिस्तान के नुरे नज़र हाफिज सहिद ने भी जेएनयू के छात्रों का समर्थन करने की आजादी चाही है । अब अगर भारत में सभी दल इस आग में अपना अपना चना भून सकते है तो बेचारे हाफिज मिया की मांग भी तो जायज है ।
एक विशेष प्रकार की आजादी हमारे सबसे ईमानदार राजनेता केजरीवाल जी को हासिल है । किसी पर भी भ्रष्टाचार बेईमानी या तानाशाही का आरोप मढ़ कर वह कह सकते है की हमारे पास सबूत है इनके कारनामो के फिर मानहानि का मुकदमा चलने पर रिहा होने की उन्हें आजादी है । हर विवाद का ठीकरा केंद्र सरकार पर फोड़ना उनक दलसिद्ध अधिकार है । अभी नया नया बिहार के विधायक जी का कारनामा भी सामने आया है। अब हमारे ही चुने विधायको को हमारी ही बेटियो की अस्मत लूटने की आजादी न मिले तो बेचारे चुनाव क्यों कर लड़े । पिछले दिनों करण जोहर जैसे दिग्गज डायरेक्टर निजी जीवन को सड़क पर लाने की आजादी और नैतिकता की नीलामी की आजादी नेट पर मांग रहे थे। रणवीर, अर्जुन और दीपिका जैसे नौजवानो के प्रेरणा स्रोत कलाकार उन्हें सराह रहे थे । जब नेट पर वयस्क सामाग्री को प्रतिबंधित करने के कानून बनाने की कोशिश हुई तो इसे नागरिको के निजता की आजादी का हैं हनन बताया गया । आमिर खान, शाहरुख़ खान को देश में बढ़ती असहीषुणता पर कोई भी टिप्पणी कर सकने की आजादी है । लेखको को अवार्ड लौटने का हंगामा करने और फिर उन्हें चुपचाप वापस लेने की आजादी है ।
अस्पतालों के डॉक्टरों नर्सो को मरीजों को मरता छोड़ हड़ताल करने की आजादी है। किसी को चक्का जाम करने तो किसी को रेल रोकने की किसी को आगजनी में सावर्जनिक सम्पत्तियो को नुक्सान पहुचाने की आजादी है । बड़बोले नेताओ को ऊटपटांग बयान देने की फिर उनसे मुकर जाने की आजादी है। जहा देखो आजादी का खुमार है । पर सोचने वाली बात है की क्या आजादी कोई वास्तु है जो कोई हमे देगा तो ही हमे मिलेगी । आजादी तो हमारा स्वधर्म है ,जन्मसिद्ध अधिकार है जो ईष्वर ने ,प्रकृति ने हमे प्रदान की । इसे छीनने या मांगने का तो प्रश्न ही नही उठता क्योंकि ये तो हमारे रगों में बहता है । जरुरत है इससे मर्यादा को, सीमाओ को समझ कर चलने की है क्योंकि बवाल तब होता है तब हमारी आजादी मनमानी बन जाती है और कुछ भी बोल सकने,कर सकने की आजादी दुसरो के अधिकारों सुरक्षा व आजादी का हनन करने लगे । घृणा और वैमनस्यता के बीज बोन लगे । हमे एक दूसरे के खिलाफ खड़ा कर दे । ऐसी बेलगाम और खतरनाक होती आजादी आप सब सोचियेगा जरूर ।
“आगोमणि”
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