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लैंगिक असमानता के खिलाफ अनोखी पहल, साइकिल पर सवार हुआ ये शख्स

पटना। एक शख्स साइकिल पर सवार होकर महिलाओं और पुरुषों के समान अधिकार दिए जाने के प्रति जागरूकता फैलाने के मिशन पर निकला है। बता दें कि लैंगिक असमानता को समझने, समझाने और एक अलख जगाने का जुनून और जज्बा देखने को मिला। ये शख्स दो पहियों पर देश को समझने निकला। वैसे तो कोई पक्का नहीं। पर बता दें कि वो जहां जाते हैं लोगों को अपना बना लेते हैं। बिहार के छपरा में जन्मे राकेश कुमार सिंह अभी ‘राइडर राकेश’ के नाम से जाने जाते हैं। सीएसडीएस की नौकरी छोड़ कर भारतीय परिवेश में लैंगिक असमानता को समझने के लिए साइकिल से भारत भ्रमण पर निकले हैं। बाल विवाह और दहेज प्रथा के विरोधी यह शख्स हैं राकेश कुमार सिंह कहते हैं महिला सशक्तीकरण का सिर्फ ढोल पीटा जा रहा है, सच तो यह है कि बहुत से परिवारों में लड़कियों को पैदा ही नहीं होने दिया जा रहा।

ये कहते हैं कि एसिड पीड़िताओं के साथ काम कर उनके दर्द और संघर्षों को करीब से समझने की घटना ने उन्हें अंदर तक हिला दिया। भ्रूण हत्या, तेजाब हमला, दहेज उत्पीड़न व घरेलू हिंसा से जूझ रही देश की आधी आबादी को ‘निरीह’ मानने वाली सोच पुरुषों में कब घर कर जाती है, इस एक सवाल ने राइडर राकेश को मजबूर कर दिया कि वह देशभर में घूमें और लोगों से मिलकर इस सोच की वजह जानने की कोशिश करें। इसी इरादे से ये साइकिल पर सवार हुए हैं।

राइडर राकेश ने कहा कि ऐसी मानसिकता कब और कैसी परिस्थितियों में बनती है कि एक महिला पर बेधड़क तेजाब फेंक दिया जाता है। दहेज न मिलने पर नवविवाहिता को जिंदा जला दिया जाता है। भ्रूण जांच में लड़की की पुष्टि होने पर उसे गर्भ में ही मार दिया जाता है। ये सवाल मेरे दिमाग में घूम रहे थे और मैंने देशभर में घूमकर इस मानसिकता को समझने की कोशिश की, कि आखिर इंसान में यह मानस बनता कैसे है?

राकेश के अनुसार अक्टूबर, 2013 में उनके मन में यह ख्याल आया और मार्च 2014 में उन्होंने साइकिल से यह यात्रा शुरू कर दी। इस दौरान बहुत सी चीजें दिमाग में आईं। मसलन, दुष्कर्म-रोधी नया कानून निर्भया कांड के बाद वर्ष 2012 में आया, लेकिन इसके बाद भी ऐसी घटनाएं हो रही हैं। दहेज कानून 1961 में बना, लेकिन अभी भी खुलेआम दहेज की मांग होती है और दहेज दिया-लिया जा रहा है। वर्ष 2013 में कानून बना कि तेजाब खुलेआम नहीं बिकेगा, लेकिन बिक रहा है। यूपी में पुलिस की एक नई पहल ‘एंटी रोमियो स्क्वायड’ शुरू किया गया, फिर भी छेड़छाड़ की घटनाएं हो रही हैं। कम होने का नाम ही नहीं ले रही हैं। इससे स्पष्ट है कि कानून तब तक कारगर नहीं साबित होगा, जब तक लोग अपनी मानसिकता नहीं बदलेंगे।”

बिहार के गांव तरियानी छपरा निवासी राकेश कुमार सिंह चेन्नई से ‘राइड फॉर जेंडर फ्रीडम’ साइकिल यात्रा पर निकल पड़े। वह साढ़े 3 वर्षों में अब तक 13 से अधिक राज्यों की लगभग 20,000 किलोमीटर यात्रा पूरी कर चुके हैं। राकेश कहते हैं कि मैं रोजाना 60 से 70 किलोमीटर तक की यात्रा करता हूं। इस दौरान मेरी साइकिल के आगे एक तख्ती लगी रहती है, जिस पर लैंगिक समानता के प्रति जागरूकता फैलाने के लिए कुछ संदेश लिखा रहता है। लोगों में कौताहूल होता है, जानने समझने का तो मैं रुककर लोगों को इस बारे में जागरूक करता हूं।

राकेश का सफर चेन्नई से शुरू होते हुए पुडुच्चेरी, तमिलनाडु, केरल, कर्नाटक, तेलंगाना, यूपी, आंध्र प्रदेश, ओडिशा, बिहार, मध्य प्रदेश, महाराष्ट्र, हरियाणा, दिल्ली और पंजाब तक पहुंच चुका है। बता दें कि उनकी यह यात्रा 22 दिसंबर, 2018 को बिहार के ही गांव तरियानी छपरा में पूरी होगी। बता दें कि यात्रा पूरी होने क बाद वे ‘राइड फॉर जेंडर फ्रीडम’ को लेकर एक कार्यक्रम का भी आयोजन करेंगे।

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Dileep Kumar
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