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13 अरब डॉलर की सिंचाई योजना से 6.6 करोड़ किसानों को कोई लाभ नहीं मिला

small farmerअभिषेक वाघमारे
अवरुद्ध सिंचाई परियोजनाओं को पूरा करने की दो दशक पुरानी योजना का करीब 6.6 करोड़ किसानों को कोई लाभ नहीं मिला है और इसने 35 करोड़ भारतीयों का आर्थिक विकास रोका है। यह निचोड़ एक ताजा विश्लेषण का है। केंद्रीय वित्तमंत्री अरुण जेटली ने आम बजट 2016-17 में कहा कि 1997 में शुरू किए गए एक्सीलरेटेड इर्रिगेशन बेनिफिट्स प्रोग्राम (एआईबीपी) के तहत सरकार आठ करोड़ हेक्टेयर खेत तक अगले पांच साल में सिंचाई सुविधा पहुंचाने के लिए 86,500 करोड़ रुपये (12.7 अरब डॉलर) खर्च करेगी। यानी, सरकार ने अगले पांच साल में जितनी भूमि को सिंचित करने का लक्ष्य रखा है, उतना आजादी के बाद के 69 साल में भी सिंचित नहीं हुआ है। 2014 में जारी कृषि आंकड़ों के मुताबिक देश के कुल 14 करोड़ हेक्टेयर खेत में से 46 फीसदी या 6.5 करोड़ हेक्टेयर खेत तक सिंचाई सुविधा पहुंचाई गई है।

एआईबीपी पर 1997 के बाद 20 साल में 72,000 करोड़ रुपये (10.5 अरब डॉलर) खर्च हुए हैं। गुजरात केंद्रीय विश्वविद्यालय के कुलाधिपति योगिंदर के अलघ ने पिछले सप्ताह समाचार पत्रिका आउटलुक में लिखा, “1990 के दशक में योजना मंत्री के रूप में एआईबीपी का प्रारूप तैयार करने के कारण इसके पितामह के रूप में मेरा एआईबीपी से लगाव है। इस सदी की शुरुआत में हालांकि हमने यह सवाल उठाया- यह योजना अब क्यों प्रभावी नहीं हो पा रही है? 12वीं योजना में कहा गया है- हम नहीं जानते हैं और हमें पता लगाना चाहिए। वित्त मंत्री को इस सवाल का जवाब ढूंढ़ने की कोशिश करनी चाहिए।”

जेटली एक असफल सिंचाई कार्यक्रम पर पैसा लगा रहे हैं। 2008 तक 34,000 करोड़ रुपये (5 अरब डॉलर) खर्च के बाद 1.9 करोड़ हेक्टेयर लक्ष्य की जगह सिर्फ 50 लाख हेक्टेयर खेत तक सिंचाई पहुंचाई जा सकी। ताजा आंकड़ों के मुताबिक, मार्च 2014 तक 95 लाख हेक्टेयर खेत तक सिंचाई सुविधा पहुंची। देश के नियंत्रक एवं महालेखापरीक्षक (सीएजी) की 2010 की एक रिपोर्ट में कहा गया है, “एआईबीपी अपना लक्ष्य हासिल करने में असफल रहा है।” इस योजना पर मंत्री ने अगले पांच साल तक प्रति वर्ष 17,300 करोड़ रुपये खर्च करने की घोषणा की है, जबकि गत दो दशकों से इस पर प्रति वर्ष सिर्फ 3,650 करोड़ रुपये ही खर्च हुए हैं। 2016-17 के बजट में एआईबीपी के लिए 1,877 करोड़ रुपये आवंटित किए गए हैं। जेटली के लक्ष्यों पर खरा उतरने के लिए इसे बढ़ाना होगा।

वित्त आयोग की एक रिपोर्ट में कहा गया है, “10वीं योजना (2007) की समाप्ति पर समग्र सिंचाई संभावना उपयोग करीब 84 फीसदी था। इसमें 1990 के बाद से लगातार गिरावट दर्ज की जा रही है। 2012 के अंत में यह क्षमता घटकर 77 फीसदी रह गई।” देश के 13.8 करोड़ में से 6.6 करोड़ किसान सिंचाई के लिए पूरी तरह बारिश पर निर्भर हैं। एआईबीपी के लिए जहां आवंटन में वृद्धि हो रही है, वहीं किसानों तक पानी नहीं पहुंच पा रहा है। सीएजी की 2010 की रिपोर्ट में कहा गया है, “सरकार को नई परियोजना शुरू करने की अपेक्षा पुरानी परियोजनाओं को पूरा करने पर ध्यान देना चाहिए और पहले से तैयार क्षमता का दोहन करना चाहिए न कि नई क्षमता बनाने पर ध्यान देना चाहिए, ताकि खर्च होने वाली भारी भरकम राशि का उत्पादक उपयोग हो।”

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