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मप्र में नेताओं के ‘नंदियों’ की चांदी!

भोपाल, 16 जुलाई (आईएएनएस)| मध्य प्रदेश में विधानसभा चुनाव से पहले नेताओं से ज्यादा उनके नजदीकी कर्मचारियों (नंदियों) की पूछ-परख बढ़ गई है। मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान से लेकर भाजपा प्रदेशाध्यक्ष राकेश सिंह तक पहुंचना हो या प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष कमलनाथ से मिलना हो, तो पहले उनके ‘नंदी’ को खुश करना जरूरी हो गया है। नंदी खुश नहीं तो नेता से मुलाकात नहीं, नंदी खुश तो कार्यकर्ता की संतुष्टि संभव है।

राज्य पर चुनावी रंग धीरे-धीरे चढ़ रहा है। भाजपा के नेता जहां चौथी बार सत्ता में आने की जोर आजमाइश में लगे हैं, वहीं कांग्रेस की हर संभव कोशिश है कि किसी तरह सत्ता में वापसी हो जाए। नेता जहां इस जद्दोजहद में उलझे हैं, वहीं उनके गण यानी उनका स्टाफ मौके को भुनाने में लगा है। यही कारण है कि कार्यकर्ता नेता तक आसानी से नहीं पहुंच पा रहा है।

कोई भी कार्यकर्ता मुख्यमंत्री चौहान से मिलना चाहता है, तो माना यही जाता है कि वह टिकट के लिए आया है, प्रदेशाध्यक्ष राकेश सिंह से मिलने जाए तो भी यही नजरिया दिखाई देता है। यही हाल कमलनाथ के यहां भी है। कौन मिलेगा और कौन नहीं, यह सब नंदी तय करते हैं।

राज्य की सियासत में इन दिनों नेताओं का स्टाफ नंदी की भूमिका में आ गया है। ऐसा नहीं है कि सिर्फ नेताओं के लिए ऐसी हो। व्यापारी मंडल से लेकर कर्मचारियों के प्रतिनिधि, महिला प्रतिनिधि को मिलना हो तो वह सब नंदी ही तय करते हैं।

राजनीतिक विश्लेषक भारत शर्मा का कहना है, वर्तमान दौर में राजनीति में कॉर्पोरेट कल्चर हावी हो गया है, नेता अब अपनी रणनीति को बेचने की बात करने लगे हैं। पहले दौर था जब महात्मा गांधी, नेहरू, सरदार पटेल, जय प्रकाश नारायण, राम मनोहर लोहिया जैसे नेता जनता के बीच जाते थे, सीधे संवाद करते थे। यही कारण था कि उन्हें जनता की बात पता चलती थी, मगर अब तो नेताओं को एजेंटों की जरूरत पड़ती है।

शर्मा का कहना है कि जनता और नेता के बीच बढ़ती दूरी का ही कारण है कि एजेंट पैदा हो गए और हर नेता का एक ऐसा एजेंट है जो मुलाकात कराने से लेकर दीगर समझौतों में मध्यस्थता की भूमिका निभाता है।

भाजपा हो या कांग्रेस, दोनों ही जगह इन एजेंटों की पूछ-परख इन दिनों ज्यादा ही हो गई है। मुख्यमंत्री तक पहुंचने के लिए उनके नजदीकी अधिकारी एक लिखित में आवेदन मांगते हैं, और कई माह गुजर जाने के बाद भी संबंधित जिम्मेदार वर्ग की मुलाकात नहीं कराते, और आवेदन का कोई जवाब भी नहीं देते।

राकेश सिंह के आसपास के नेता दूरी बनाने में अहम भूमिका निभाते हैं। जहां तक कमलनाथ की बात है, उनके यहां एक ऐसा व्यक्ति तैनात है जो स्वयं को कमलनाथ से कम नहीं समझता। कार्यकर्ता पहुंचता है तो उसे डांटना-फटकारना उसके लिए आम बात है।

कांग्रेस के सूत्रों का कहना है कि कमलनाथ भले ही अब केंद्रीय मंत्री न हों, मगर उनके दफ्तर का कामकाज ठीक केंद्रीय मंत्री के अंदाज में चलता है। वहां नोटशीट की परंपरा अब भी बदस्तूर जारी है। उनके स्टाफ को अब तक यह समझ नहीं आया है कि कमलनाथ अब मंत्री नहीं, प्रदेश कांग्रेस के अध्यक्ष हैं।

भाजपा हो या कांग्रेस, दोनों ही दलों में नंदियों की बढ़ती हैसियत और प्रभाव के चलते कार्यकर्ताओं में नाराजगी है। चुनाव के दौर में जिस दल में नंदी ज्यादा असरकारक रहेगा, उसे नुकसान उठाने की आशंका उतनी ही ज्यादा रहेगी। नेता भले ही जमीन तक जाने की कोशिश में हों, मगर नंदी तो दरवाजे पर बैठा है और वह सेवक का रास्ता रोके हुए है।

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