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कुछ कहानीकार पाठकों की परीक्षा लेते हैं : असगर वजाहत

 नई दिल्ली, 7 अक्टूबर (आईएएनएस)| हिंदी के वरिष्ठ कहानीकार और प्रख्यात नाटककार असगर वजाहत ने कहा कि हिंदी में ऐसे बहुत कम कहानीकार हैं, जिनसे उनके पाठक शिकायत करते हैं कि आपकी कहानी समझ में नहीं आई।

 ऐसे ही कहानीकारों में से एक संजय सहाय हैं, जो हमेशा अपने पाठकों का इम्तहान लेते हैं और अपने पाठक को छूट भी देते हैं कि वे उस ‘स्पेस’ को भरें। मौका था कनाट प्लेस इलाके के ऑक्सफोर्ड बुकस्टोर में राजकमल प्रकाशन द्वारा आयोजित संजय सहाय के कहानी-संग्रह ‘मुलाकात’ और ‘सुरंग’ पर बातचीत का।

वजाहत ने अपने वक्तव्य में कहा कि संजय सहाय की कहानियां कथा-वस्तु और लेखक के द्वंद्व की कहानियां हैं। इनका अनुभव-संसार बहुत व्यापक है। व्यापक अनुभव-संसार में रची गई ये कहानियां आपसे अलग-अलग तरह की मांगें करती हैं, इसीलिए इनकी कहानियों में काफी विविधता मिलती है।

इससे पहले, कथाकार संजय सहाय से सुपरिचित कथाकार वंदना राग और समालोचक संजीव कुमार ने उनकी कहानियों पर विस्तार से बातचीत की। कुमार ने कहा कि संजय सहाय की कहानियां एक तरह की और एक समय की नहीं हैं। नब्बे के दशक से लेकर 2018 के बीच की ये कहानियां सिद्ध करती हैं कि कहानीकार में अलग-अलग तरह की कहानियां लिखने का कौशल है।

उन्होंने कहा, “ये बहुत ही दुरुस्त व सुसंपादित कहानियां हैं। संरचना की दृष्टि से ये कहानियां भले ही एक रुझान का प्रतिनिधित्व नहीं करतीं, मगर अंतर्वस्तु की दृष्टि से निश्चित तौर पर एक रुझान का प्रतिनिधित्व करती हैं।”

वंदना राग ने कहा कि बहुआयामी और बहुपरतीय कहानियां संजय सहाय की ताकत हैं। पुराने शब्दों को सामाजिक संरचना में कैसे ढालना है, इन्हें अच्छी तरह आता है। समय के साथ हिंदी कहानी ने जो संवेदनात्मक और संरचनात्मक संश्लिष्टता अर्जित की है, इनकी कहानियां उसकी उम्दा मिसाल हैं। प्रस्तुति का ढंग ऐसा है, मानो सबकुछ आपके सामने घटित हो रहा है।

संजय सहाय ने अपनी कहानियों से जुड़े अपने लेखन-अनुभव को साझा करते हुए कहा, “मेरी हमेशा यही कोशिश रहती है कि कहानी लिखते समय एक बड़े दायरे को पकड़ा जाए और कहानी के पात्र जिस दायरे और भाषा से आते हैं, उसी परिवेश व लहजे को कहानियों में पिरोया जाए।”

अधिकांश कहानियों में धर्म और राजनीति के खिलाफ तथ्यों पर अपने विचार रखते हुए संजय सहाय ने कहा, “मैं मानता हूं, मनुष्य एक पैदाइशी राजनीतिक जीव है और वह जीवनभर किसी न किसी रूप में राजनीति करता रहता है। धर्म से बड़ा पाखंड कुछ नहीं होता, पाखंड की राजनीति बहुत घातक होती है। पाखंड को समझने की जरूरत है। मुझे पता है, ऐसी बात पर मुझे नास्तिक कहा जाएगा। हां, मैं नास्तिक हूं।”

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