नई दिल्ली | नई दवाइयों के विकास, आधुनिक मेडिकल तकनीकों की उपलब्धता और मिर्गी के प्रति बढ़ती जागरूकता रोगियों को सामान्य जिंदगी बिताने में काफी मदद कर रही है। साथ ही कई तरह की भ्रांतियां भी टूट रही हैं। मिर्गी दिमाग से जुड़ा विकार है, जिसमें दिमाग की कोशिकाओं की विद्युतीय गतिविधियां असामान्य हो जाती हैं। इस वजह से व्यक्ति असामान्य व्यवहार करने लगता है। इस स्थिति की पहचान और जांच करना बहुत जरूरी है। भारत में प्रतिवर्ष 5 लाख नवजात शिशु मिर्गी की बीमारी के साथ जन्म ले रहे हैं। पिछले दशक में सिर की चोट लगने के कारण 20 फीसदी वयस्कों में मिर्गी के मामलों में बढ़ोतरी हुई है। भारत में तकरीबन 95 फीसदी लोग मिर्गी का इलाज ही नहीं करवा पाते, जबकि 60 प्रतिशत शहरी लोग दौरा पड़ने के बाद डॉक्टर से परामर्श लेते हैं और इस मामले में ग्रामीण भारतीय का प्रतिशत सिर्फ 10 फीसदी है।
विशेषज्ञों का मानना है कि मिर्गी पीड़ित बच्चे सफल और खुशहाल जिंदगी बिता सकते हैं। कई प्रसिद्ध कवि, लेखक और खिलाड़ी मिर्गी से पीड़ित होने के बावजूद अपने क्षेत्र में सफल रहे हैं। जीवन में समस्याओं के प्रति सकारात्मक सोच ही सफलता और संतुष्टि के लिए महत्वपूर्ण है। बीमारी के प्रति हमारे नकारात्मक दृष्टिकोण को चुनौती दी जानी चाहिए, जिससे इस बीमारी से ग्रस्त लोगों को अपनी जिंदगी सामान्य व खुशहाल बिताने में मदद मिलेगी। मिर्गी की समस्या भारत सहित विकासशील देशों में सेहत से जुड़ी प्रमुख समस्या है। प्रतिवर्ष 35 लाख लोगों में मिर्गी की समस्या विकसित होती है जिसमें 40 फीसदी 15 साल से कम उम्र के बच्चे है और 80 फीसदी विकासशील देशों में रहते हैं।
बच्चों में मिर्गी :
बच्चों को प्रत्येक उम्र में अलग अलग प्रकार के दौरे पड़ सकते हैं। कुछ बच्चों को मिर्गी दिमाग में किसी चोट की वजह से हो सकती है। कुछ मामलों में बच्चे अनुवांशिक समस्या के चलते मिर्गी के साथ मानसिक रूप से अविकसित हो सकते हैं। मिर्गी के दौरे में आमतौर पर बच्चों को ज्वर दौरा (फेबराइल दौरा) पड़ता है, जिसमें संक्रमण के साथ तेज बुखार हो जाता है। इस बारे में सर गंगाराम अस्पताल के सीनियर न्यूरोलोजिस्ट डॉ. अंशु रोहतागी कहते हैं, “हालांकि दुनियाभर में मिर्गी के प्रति जागरूकता बढ़ाई जा रही है, इसके बावजूद लोगों में अभी भी इस बीमारी को लेकर कई तरह की भ्रांतियां हैं।”
वह कहते हैं, “इस वजह से रोगियों को सही समय पर सही इलाज नहीं मिल पाता। इसलिए हमें मिर्गी जैसी बीमारी से जुड़ी जानकारियां व जागरूकता कार्यक्रम ज्यादा से ज्यादा करने की जरूरत है ताकि लोगों को पता चले कि ये बीमारी भी अन्य बीमारियों की तरह ही है।” बच्चों में मिर्गी की समस्या विशेषज्ञों के लिए काफी चिंता का विषय है। इस बारे में मेंदाता द मेडिसिटी के न्यूरोलोजिस्ट डॉ. आत्माराम बंसल का कहना है, “मिर्गी बच्चे को अलग अलग तरीके से प्रभावित करता है। ये उसकी उम्र और दौरे के प्रकार पर निर्भर करता है। मिर्गी पीड़ित बच्चे सफल व खुशहाल जिंदगी बिता सकते हैं। रोग की पहचान होने पर ये दिन प्रतिदिन की जिंदगी को प्रभावित नहीं करता लेकिन कुछ मामलों में ये थोड़ा मुश्किल अनुभव हो सकता है।”
न्यूरोलोजिस्ट के अनुसार, दौरे के प्रकार व आवृति में समय के साथ बदलाव आ सकता है। कुछ बच्चों में मिर्गी की समस्या किशोर अवस्था के मध्य से देर में विकसित हो जाती है। एक और दौरे आने के रिस्क का स्तर 20-80 फीसदी के बीच होता है। ज्यादातर मामलों में पहला दौरा आने के बाद अगले छह महीने में दोबारा आने का खतरा होता है। दोबारा दौरा आने का रिस्क उसके कारण पर निर्भर करता है। अगर दौरा बुखार की वजह से आता है तो दोबारा दौरे आने की संभावना बुखार को छोड़कर कम हो जाती है।
जागरूकता बहुत महत्वपूर्ण है :
अगर आपका बच्चा मिर्गी से ग्रस्त है तो आप और बच्चे के अध्यापक को निम्नलिखित जानकारी होनी चाहिए, ताकि जब बच्चे को मिर्गी का अटैक आएं तो उन्हें पता होना चाहिए कि ऐसे समय में उन्हें क्या करना है।
सलाह :
* बच्चे के साथ रहें। दौरा समय होने पर खत्म हो जाएगा।
* शांत तरीके से बात करें और दूसरों को समझाएं कि क्या हो रहा है।
* बच्चे के सिर के नीचे कुछ मुलायम कपड़ा इत्यादि रख दें।
* खतरनाक या नुकीली चीजों को दूर कर दें।
* बच्चे को नियंत्रित करने की कोशिश न करें।
* दौरे का समय चेक करें कि कितने समय के लिए दौरा आया।
* अगर दौरा 5 मिनट से ज्यादा समय का है तो तुरंत चिकित्सीय सहायता लें।
* इस दौरान बच्चे के मुंह में कुछ न डालें।
* दौरे के बाद बच्चे को आश्वस्त करते हुए बात करें।
* जब बच्चे की कंपकंपाहट रुक जाएं तो उसे आराम की स्थिति में लाएं।
* बच्चे को पूरी तरह होश आने तक उसके साथ रहें।